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सूत्र
भावार्थ
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
णमंसिहामि जाब पज्जुवासामि; अहमे से इमाई अट्ठाई जाव वागरणाई णोवागरि - हिति तोणं एएहिं चेत्र अट्ठेहिय जाव वागरणेहिय निष्पटुपसिणवागरणं करेस्सामि त्तिकद्दु, एवं संपेहेइ, संपेहेइत्ता हाए जाव सरीरे साओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमइत्ता पायविहारचारेणं एगेणं खंडियसएणं सद्धिं संपरिवुडे, वाणियगामं णयरं मज्झमज्झणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छइत्ता जेणेव दूइपलासए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता, समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा समणं भगवं महावीरं एवं वयासी - जत्ता ते भंते ! मेरे प्रश्नों के उत्तर नहीं देंगे तो मैं उन को प्रश्न के उत्तर में अशक्त करूंगा ऐसा विचार करके स्नान किया यावत् अलंकृत शरीरवाला हुवा और अपने गृह से नीकलकर पांव से चलते हुए एक सो शिष्यों के (परिवार से वाणिज्य ग्राम नगर की मध्य बीच में होते हुवे दूतिपलाश उद्यान में श्रमण भगवंत महावीर (स्वामी की पास आया और पास खड़ा रहकर ऐसा बोला कि अहो भगवन् ! क्या तुम को ११ यात्रा है २ यज्ञ है ३ अव्याबाध है और फ्रासुक विहार है ? भगवन्तने उत्तर दिया कि अहो सोमिल! | हम को यात्रा है, यज्ञ भी है, अव्याबाध भी है और फ्रासुक बिहार भी है || ७|| तब सोमिलने पुनः प्रश्न किया
अठारहवा शतक का दसवा उद्देशा ++
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