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________________ 3 8- पंचमाङ्ग विवाह पण्णात्त ( भगवती ) सूत्र चउरिदियाणय जे भविए तिरिक्खजोणिएवा मणुस्सेवा पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं जे भविए णेरइएवा तिरिक्खजोणिएवा मणुस्सेवा देवेवा पचिंदियतिरिक्ख जोणिएसु उववजित्तए एवं मणुस्साधि । वाणमंतर जोइसिय वेमाणियाणं जहा २३६५ णेरइयाणं ॥१॥ भवियदव्वणेग्इयस्सणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहतं उक्कोसेणं पुवकोडी ॥ २ ॥ भवियदव्व असुरकुमारस्सणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमहत्तं उक्कोसेणं गौतम ! जो तिर्यंच, मनुष्य व देव में पृथ्वीकाया का आयुष्य बांधकर रहे हैं और पृथ्वीकाया में उत्पन्न होने योग्य हैं वे भविद्रव्य पृथ्वी काया हैं. ऐसे ही भविद्रव्य अप्काया व वनस्पति काया का जानना. तेउकाय, वायुकाय, बेइन्द्रिय तेइन्द्रिय व चतुरेन्द्रिय में उत्पन्न होने वाले तिर्यंच व मनुष्य में से आते हैं... तिर्यंच पंचेन्द्रिय भविद्रव्य नारकी, तिर्यंच, मनुष्य व देव में से होते हैं. ऐसे ही मनुष्य का जानना. वाणव्यंतर, ज्योतिषी व वैमानिक का नारकी जैसे कहना. ॥ १॥ अहो भगवन् ! भविद्रव्य नारकी की स्थिति कितनी कही? अहो गौतम ! भविद्रव्म नारकी की जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट पूर्व क्रोड की ॥२॥ अहो भगवन् ! भविद्रव्य असुर कुमार की स्थिति कितने काल की कही ? अहो गौतम ! जघन्य अंत भावार्थ अठारहवा शतक का नववा उद्देशा Page
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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