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________________ 48 पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 40 बयासी-पभूणं भंते ! मंडुए समणोवासए देवाणुप्पियाणं अंतियं जाव पव्वइत्तए ? , णो इणढे समटे ॥ एवं जहेव संखे तहेव अरुणाभे जाव अंतकरेहिति ॥ १८ ॥ देवेणं भंते ! माहट्ठींए जाव महेसक्खे रूवसहस्सं विउव्वित्ता पभू अण्णमण्णेणं साई संगाम संगामेत्तए ? हता पभ ॥ ताओणं भंते ! बोंदीओ किं एग जीव फुडाओ अणेग जीव फुडाओ ?गोयमा ! एग जीव फुडाओ णो अणेग जीव फुडाओ तेसिंणं भंते ! बोंदीणं अंतरा किं एग जीव फुडा अणेग जीव फुडा ? गोयमा ! एग जीव फुडा णो अणेग जीव फुडा ॥ १९ ॥ पुरिसेणं भंते ! अंतरे हत्थेणवा यहां पर कहना यावत् अरुणाभ विमान में उत्पन्न होकर वहां से महाविदेह क्षेत्र में सीझेगा बुझेगा यावत् से अंत करेगा ॥ १८ ॥ अहो भगवन् ! महद्धिक यावन् महासुख वाला देवता सहस्ररूपों का वैक्रेय करके परस्पर संग्राम करने को क्या समर्थ है ? हां गौतम ! देवसहस्ररूपों का वैक्रेय करके परस्पर संग्राम में समर्थ हैं. अहो भगवंत ! उन शरीरों को क्या एक जीव स्पर्शा हुवा है या अनेक जीव स्पर्श अहो गौतम ! एक जीव स्पर्शा हुवा है. अहो भगवन् ! उन शरीरों की बीच में क्या एक जीव स्पर्शा हुवा है या अनेक जीव स्पर्श हवे हैं ? अहो. गौतम ! एक जीव स्पर्शा हुवा है परंतु अनेक जीव स्पर्श हवे नहीं हैं 482 अठारहवां शतक का सातवा उद्देशा - भावार्थ ।
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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