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भावार्थ
44 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी,
सिय चउफासे ॥ एवं तिपदसिएवि णवरं एगवण्णे सिय दुवण्णे, सिय तिवण्णे, एवं रसेसुवि, सेसं जहा दुपदेसियस्स, एवं चउप्पदेसिएवि णवरं सिय एगवण्णे जाव सिय चउवण्णे; एवं रसेसुवि, सेसं तंचेव ॥एवं पंचपएसिएवि णवरं सिय एगवण्णे जाव पंचवण्णे एवं रसेसुवि; गंध फासा तहेव जहा पंचपदेसिओ॥ एवं जाव असखजपदसिओ ॥
सुहुम परिणएणं भंते ! अणंतपदेसिए खधे कइवण्णे ? जहा पचपदेसिए तहेव दोनों दो वर्ण के होवे तो दो वर्ण इम के दश विकल्प. ऐसे ही स्यात् एक गंध, स्यात् दो गंध, इस के अ तीन विकल्प, ऐसे ही स्यात् एक रस, स्यात् दो ग्स दोनों के १५ विकल्प, ऐ। स्यात् दो स्पर्श, स्यात् तीन स्पर्श, स्यात् चार स्पर्श, इस के ४२ विकल्प होते हैं. ऐसे ही तीन प्रदेशिक स्कंध का कहना. विशेष में स्यात् तीनों का एक वर्ण जिम के पांच विकला यावत् तीन वर्ण सब ४५ विकल्प, गंध के द्विसंयोगी दो, तीन संयोगी तीन, ऐसे पांच रस के. ४५ विकल्प वर्ण जैसे कहना, और शेष सब . द्विपदेशिक स्कंध जैसे कहना. स्पर्श के २५ भांगे सब मीलकर १२० भांगे हुवे यारत् भी
ही चार प्रदशिक का. विशेष में स्यात् एक वर्ण स्यात् चार वर्ण सब भांगे ९० पाते हैं. गंध के रम के ९०,स्पर्श के ३६, सब२२३भांगे वर्ण के. ऐसे ही पांच प्रदेशिक का कहना विशेष में स्थान एक वर्ण स्यात् पांच वर्ण ऐसे ही रस गंध व स्पर्श का पूर्वोक्त प्रकार से कहना, सब भांगे ४७४ हुवे. जैसे है।
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी
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