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________________ 48 २३१५ पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) मूत्र माकंदिय पुत्ते अणगारे समणं भगवं महावीरं जाव णमंसित्ता जेणेव समणे णिग्गंथे तेणेव उरागच्छइ २त्ता समणे णिग्गंथे एवं वयासी एवं खलु अजो! काउलेस्से पुढवीकाइए तहेव जाव अंतं करेइ, एवं खलु अज्जो ! काउलेस्से आउकाइए जाव अंतकरेइ ॥ एवं खलु अजो! काउलेस्से वणस्सइकाइए जाव अंतंकरेइ ॥ ४ ॥ तएणं समणा णिग्गंथा माकंदियपुत्तस्स अणगारस्स एव माइक्खमाणस जाव परूवमाणस्स एयमढें गोसदहति ३, एयमटुं असदहमाणा ३, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छइत्ता समणं भगवं महावीरं वंदंति णमंसति २त्ता सीझे बुझे यावतू अंत करे. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं यों कहकर माकंदियपुत्र अनगार श्रमण भगवंत महावीर को यावत् नमस्कार कर श्रमण निर्ग्रन्थों की पास आये और श्रमण निर्ग्रन्थों को ऐसा बोलेकि कापुत लेश्या वाला पृथ्वी कायिक जीव यावत् अंतकरे ऐसे ही कापुत लेश्या वाला अप्कायिक जीव यावत् अंतकरे ऐसे कापुत लेश्या वाला वनस्पतिकायिक जीव यावत् अंतकरे ॥४॥ माकंदियपुत्र अनगार 5 के ऐसे कथन को श्रमण निर्ग्रन्थ नहीं श्रद्धते यावत् नहीं रुचि करते श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास गये. श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर ऐसा बोले कि अहो भगवन् ! माकंदिय अठारहवा शतक का तीसरा उद्देशा 4880 भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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