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42 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
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१६९ महाशुक्र देव का मनोमय प्रश्न १७० देवता को असंयति कहना क्या ? ६२६ १७१ देवताओं की अर्धमागधी भाषा. १७२ केवली मोक्षगामी को जाने छद्मस्त सुनकर मोक्षगामी जाने.
६५७
६.०८
१७३ चार प्रमाण, केवली चर्म कर्म जाने. ६५९ १७४ केवली के मनयोग को देवता जाने. ६६१ १७० अनुत्तर विमान के देव वहीं से प्रश्नकरे. ६६३ १७६ अनुशर विमान के देव क्षीणमोही नहीं६६५ १७७ केवली इन्द्रियों से जाने देखे नहीं. ६६५ १७८ केवली समयनन्तर क्षेत्र पलटते हैं
१७९ चउदेपूर्व धारी अनेक रूप बलासके. ६६८. पांचवे शतक का पाचवा उद्देश ६६९ (१८० छद्मस्त मनुष्य सिद्ध नहीं होवे.. १८१ सब जीवों एवंभूत वेदना वेदते हैं. | १८२ भरत के वर्तमान कुलकरों पांचवे शतक छट्ठा उद्देश
६६९ ६७०
६७३
६७३
१८३ अल्पायुष्य दीर्घायुष्य कैसे होवें ? ६७३ १८४ अशुभदीर्घायु शुभदीर्घायु कैसे होवे १३७५ १८५. चोरी में गयामाल गवेषने में क्रिया. ६७६ १८६ वस्तु वेंचने खरीदने वाले को क्रिया. १८७ अग्नि प्रज्वालने व बुझाने में ज्यादा पाप किसे ?
६७९
६८०
१८८ धनुष्य बान चलने में कितनी क्रिया. ६८२ १८९ चार सो पांच सो योजन में नेरीये भरे हैं.
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१९० आधाकर्मी आदि सदोपस्थान भोगव ने का पाप.
६८७ १९१ आचार्य उपाध्याय सम्प्रदाय के सन्मान से मोक्षपावे.
६८९
१९२ आल (बज्जा) चडाने से वैसाही पावे ६९० पांचवा शतक का सातवा उद्देश ६९० १९३ प्रमाणु आदि पुद्गलों का कथन. १९४ प्रमाणु व स्कन्धों की परस्पर स्पर्शना ६९८
६९१
* प्रकाशक - राजाबहादुर हाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी