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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
43 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
का
अ० अबाधा अं० अंतर ५० प्ररूपा ॥ १ ॥ इ० इस में० भगवन् र० रत्नप्रभा पु० पृथ्वी का जो० ज्योतिषी का के० कितना पु० पृच्छा गो० गौतम स० सात ण० नेऊ जो० यांजन स० शत अ० अबाधा अं० अंतर प० प्ररूपा जो० ज्योतिषी मं० भगवन् सो० सौधर्म ई० ईशान क० देवलोक के० कितना पु० पृच्छा गौ० गौतम अ असंख्यात जो० योजन जा० यावत् अं० अंतर प० प्ररूपा सो० ( सौधर्म ई ईशान का भं० भगवन् स०सनत्कुमार मा० माहेन्द्र का० के० कितना ए० ऐसे ही स० सनत्कुमार पण्णत्ते ॥ ७ ॥ इमीसेणं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए जोइसियस्स केवइयं पुच्छा ? गोयमा ! सत्तणउ जोअणसए अबाहाए अंतरे पण्णत्ते । जोइसियरसणं भंते ! सोहमीसाणाय कप्पाणं केवइयं पुच्छा ? गोयमा ! असंखज्जाई जोअण जाव अंतरे पण्णत्ते । सोहम्मीसाणाणं भंते ! सणकुमार माहिंदाणय केवइयं ? एवं चेव ॥ सणंकुमार माहिंदाणं भंते ! बंभलोगस्स कप्पस्स केवइयं ? एवं चेत्र ॥ बंभलोगस्सणं सातवी तम तमा पृथ्वी व अलोक का कितना अंतर कहा है ? अहो गौतम ! असंख्यात योजन सहस्र का { अंतर कहा है. ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी व ज्योतिषी का कितना अंतर कहा ? अहो गौतम ! सातसो नेउ [ ७१० ] योजन का अंतर कहा. अहो भगवन् ! ज्योतिषी व सौधर्म ईशान देवलोक का कितने योजन का अंतर कहा ? अहो गौतम ! असंख्यात क्रोडाक्रोड योजन का अंतर कहा
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहाय जी ज्वालाप्रसादजी *
१९५४