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शब्दाथकोष.माया.लोभ.क्रोधमान माय लेश इ० इम मं० भगवन र रत्नप्रभा पु० पध्दी में स० तीस नि०११
३ ३ १ नरका वास सशत सहस्र में ए० एकेक मि. नरकावास में ने ईमान. माया. लोभ. १
नारकी के के० कितने ओ० अवगाहना स्थान ५० प्ररूपे गो० गौतम अ० अभंख्यात ओ० अवगाहना स्थान ज. जघन्य ओ• अवगाहना अं० अंगुलका अ० असंख्यातवा भाग जघन्य ओ अवगाहना एक एक | प्रदेशाधिक ज० जघन्य ओ० अवगाहना दु०दोपदेशाधिक जघन्य ओ० सयसहस्सेमु एगमेगंसि निरयावाससि नेरइयाणं} केवइया ओगाहणट्ठाणा प. ? गोयमा ! असंखेज्जा ओ
गाहणटुणा प० तं. जहणिया ओगाहणा अंगुलस्सी चतु:मयोगी १६.
असंखेजइ भागं, जहणियाओगाहणा एगपदेसाहिया, जहणिया ओगाहणा क्रोधमान माय लेभ भावार्थ
अन अगाहना द्वार कहते हैं. अहो भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में तीस लाख नरकावास कहे हैं. उन प्रत्येक नरकावास में नारकी को कितने अवगाहना स्थान कहे ? अहो गौतम ! प्रत्येक नरकावास में नारकी के असंख्यात अवगाहना
स्थान कहे हैं. जघन्य अवगाहना अंगुलके असंख्यातवा भाग की सब नरक में है. ३ एक प्रदेश अधिक जघन्य अवगाहना स्थान, दो प्रदेश अधिक जघन्य अवगाइना
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4848 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र -
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पहिला शतक का पांचवा उशा 8948
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