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शब्दार्थ
श्री अमोलक ऋषिजी अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि
प्रकार के प०प्रमत्त अ. अप्रमत्त जे. जो अ० अप्रमत्त संयति ते. उनको ए० एक मा० मायाप्रत्ययिकी क्रिया जे. जो प० प्रमत्त संयति ते. उनको दो दोक्रिया आ० आरंभिकी मा० मायाप्रत्यायकी जे० जो सं. संयतासंयति ते. उनको आ० पहिली तिः तीन कि० क्रिया अ० असंयति को च० चारक्रियाई मि० मिथ्यादृष्टि को पं० पांचक्रिया स० सममिथ्यादृष्टि को पं. पांचक्रिया ॥ १३ ॥ वा. वाणव्यंतर, जोज्योतिषी वे वैमानिक ज. जैसे अ.अमुरकुमार न विशेष वेवेदना में णानानासकार मा०मायी मि०,
अपमत्त संजयाय, ॥ तत्थणं जे ते अपमत्तसंजया तेसिणं एगा मायावत्तिया किरिया कजइ । तत्थणं जे ते पमत्तसंजया तेसिणं दो किरिया कजइ तं. आरंभियाय मायावत्तियाय. तत्थणं जे ते संजयासंजया तेसिणं आदिमाओ तिण्णि किरियाओ कजति । असंजयाणंचत्तरि किरियाओ कजंति मिच्छविट्ठीणं पंच
सम्ममिच्छट्ठिीणं पंच ॥ १३ ॥ वाणमंतरजोइसवेमाणिया जहा अमायाप्रत्यायकी ऐसी दो क्रियाओं लगती हैं. जो संयतासयति-श्रावक हैं उन को आरंभिकी माया प्रत्ययिकी व परिग्रहिकी ऐसी तीन क्रियाओं लगती हैं. असंयति को चार क्रियाओं लगती हैं. उप तीन और चौथी अप्रत्याख्यान. मिथ्याष्ट्रि व सममिथ्याष्ट्रिको पांच क्रियाओं. उपर्युक्त क्रियाओंमें मि दर्शन प्रत्ययिकी क्रिया पांचवी बढी ॥ १३ ॥ वाणव्यंतर ज्योतिषी व वैमानिक को असुरकुमार जैसे शरीर का अल्पपना व बहुतपना अपने २ शरीर की अवगाहना के अनुसार जानना. वेदना
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * .
भावार्थ