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________________ आडंबसं तप तप ए। लोक करे जयकार है। राजानी कन्या, प्रभावतीसुं विवाह । उलालो ॥ प्रभावती राजानी कन्या, परण्या श्री जिन पास । माय ताय हुंती पूरी, पुगी 8 मननी आस ॥ प्रभावती रांणी संगाते, सुख भोगवे अपार । रहे घरवासे मन हुल्लासे, सहुकरे जयकार ॥ ११ ॥ इति ॥ ॥ढाल दूसरी॥ एक दिन पास कुमार, हारे बैठा गोखडे, जोवे नगर चराचरु ए । कमठ तपतो ताप, हारे नगर बाहिर थको, लोक | सहु वांदण गया ए ॥ देखण पास कुमार, हारे सेवक तेडियो, चालो इचरज देखवा ए। सेवकने संघाते, हारे पास कुमार चढ्या, मिथ्यात्वी दल मोडवा ए॥१॥ तिहां पहुंता श्रीपास, हारे दीठो तापस, आडंबरसु तप तप ए। लोक करे जयकार, हारे श्री सूरज पर तपे, चार अंगीठी चहुं दिशे ए । दया नहीं लवलेश, हारे फोगट तप तपे, इम बोल्या त्रिभुवन धणी ए। Rकोपकरी विकराल, हारे कहे जिनवर भणी, काज करो तुमे आपणो ए ॥ २ ॥ बले अंगीठी माहे, हारे सबल भुजंगम, ते जाण | श्री जिनवरु ए । अवर न जाणे भेद, हारे काष्ट विडारीयो, सर्प बलतो काढीयो ए । सेवक दे नवकार, हारे चार सरणा दिया, है हिवे घारेए विषधरू ए । तेह तणे परभाव, हारे धरणेंद्र सुर थयो, कमठ थयो चिंतातरु ए ॥ ३॥ आणी मनमा रोष, हारे गयो गंगा तटे, झंपापात कियो तिहां ए। आत-रौद्र धरी ध्यान, हारे ज्ञान नहीं पोते, हुवो मेघमाली देवताए॥ हिवे श्रीपास कुमार, हारे घरमा | | संचर्या, लोक सहु जय जय करे ए । दीक्षा अवसर जांण, हारे देव लोकांतिका, आवे इम प्रतियोधवाए ॥ ४ ॥ इति ।। ॥ढाल तीसरी॥ देव लोकांतिक आवियारे, दीक्षा अवसर जाण ।। बुझ बुझ परमेसरूरे देय संवत्सरी दान ।। उलालो ।।दान संवच्छरी दिये दिये ल, हारे कहे जिनवर भा.दश ए॥ दया नहीं लवलेश, हारे FREERASACRORE - Juin tuction Internal For Personal & Private Use Only www.iminelib yong
SR No.600208
Book TitleSadhu Pratikramanadi Sutrani
Original Sutra AuthorJagjivan Jivraj Kothari
Author
PublisherJagjivan Jivraj Kothari
Publication Year1925
Total Pages92
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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