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________________ निंदा करता हुआ आहार करे तो सोनेके चित्रामण युक्त चारित्ररूप दीव्यमहलको द्वेषरूपी धुयेंसे मलीन करने समान चौथा धूम्रदोष लगे ४, और साधु-साध्वी छ कारणों से आहार करें सो बतलाते हैं:-अपनी क्षुधा वेदनी दबाने के लिये १, आचार्य-उपाध्यायबाल-वृद्ध-तपस्वी-रोगी वगैरह मुनियोंकी सेवा-भाक्त वैयावच्च करने के लिये २, इरियासमिति पालने के लिये ३, स्वाध्याय व पूंजने प्रमार्जने आदि संयमकी रक्षाके लिये ४, आत्म संयमकी शुद्धिरूप प्राण धारण करनेके लिये ५, तथा सूत्रार्थ धर्मध्यान चितवन करने के लिये ६, इन छ कारणोंसे साधु-साध्वी आहार करें परंतु आत्म कल्याणके हेतुभूत इन्हीं छ कारणों के बिना बल-रूपादिक लिये, स्वाद के लिये आहार करें तो अकारण नामा पांचवा दोष लगे ५. | अब छ कारणोंसे साधु-साध्वी आहार न करें सो बतलाते हैं-ज्वर (तप-बुखार ) आदि रोगं आवें तत्र आहार न करें १, | देव-मनुष्य-तिर्यच संबन्धी किसी प्रकारके उपसग आवें तब आहार न करें २, क्षुधा (भूख) सहन करनेके लिये उपवास-बेला-तेला 8 (छट्ट-अट्ठम ) आदि तप करनेके लिये आहार न करें ३, काम विकार बढने लगे तो ब्रह्मचर्य की रक्षा करनेके लिये आहार न करें &|४, वर्षा वर्षति हो, धुसर गिरती हो या रास्तेमे त्रसजीवोंकी उत्पत्ति हुई हो तो जाते आते जीव विराधना न होने पावे इस प्रकार | | जीवदयाके लिये आहार न करें ५, और तप-संयम करते हुए शरीर शक्तिरहित हो जाये तब या वृद्ध अवस्थामें अथवा अंतसमय | नजीक मालूम हो तब यावत्जीवन पर्यंत अनसन करें तव संलेखनामें शरीरका त्याग करने के लिये आहार न करें ६. इस प्रकार कारणसर निदोष आहार-पाणी-वस्त्र-पात्र वगैरह लेकर शुद्ध संयमकी आराधना करने वाले साधु-साध्वी थोडे भवोंमें मोक्ष जाते हैं | और मन संबंधी-वचनसंबंधी-शरीरसंबंधी रोग-शोक-भय-परवश-गर्भावास-नरकादिक चारगतिके अनंत दुःखोंसे रहित ASTROACHECCX जावे तब लिये आहार वाम मोक्ष हित For Personal Private Use Only
SR No.600208
Book TitleSadhu Pratikramanadi Sutrani
Original Sutra AuthorJagjivan Jivraj Kothari
Author
PublisherJagjivan Jivraj Kothari
Publication Year1925
Total Pages92
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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