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मूलकर्मपिंड नामा दोष १६, यह सोलह दोष आहार--वस्त्र-पात्र-पुस्तक वगैरह में लोभादिसे लगते हैं सो उपयोग पूर्वक साधुसाध्वियों को त्याग करने चाहिये।
अब साधु तथा गृहस्थ दोनोंसे १० दोष ग्रहणैषणाके लगतेहैं, सो बतलातेहैं । गौचरी जानेवाले साधु-साध्वी आहार लेते | समय आधाकर्मी वगैरह कोईभी दोषकी शंकासहित संदिग्ध मनसे आहार लेवे सो प्रथम शंकित दोष १, सचित्त या अचित्त अकल्पनीय या निंदनीय व अभक्ष पदार्थके संघट्टे वाले आहारको ग्रहण करना सो दूसरा भ्रक्षित दोष २, सचित्त पृथ्वी वगैरह छ
कायपर स्थापन किया हुवा आहार लेना सो तीसरा निक्षिप्त दोष ३, सचित्त फलादिसे ढका हुआ आहार लेना सो चौथा पिहित ला दोष ४ देते समय एक भाजनमेंसे दूसरे भाजनमें डाला हुआ आहार लेना सो पांचवा संहृत दोष ५, बाल-वृद्ध-नपुंसक-अन्ध | मदोन्मत्त-कंपमान शरीरवाले-हाथ पर तूटे हुए-बैडी डाले हुए-पादुका-जुत्तावाले-खांसीवाले तथा तोडना-फोडना-पिंजनालोडना-झाडु निकालना-भुंजना-पीसना-फुक देनादि छ कायकी विराधना करने वाले और गर्भवती स्त्री व बच्चेको उठाने वाली, बच्चेको दुधपीलाना छोड देना इत्यादि ऐसे मनुष्योंसे आहार लेना सो छट्टा दायक दोष ६, सचिन अनादि मिलाहुआ वस्तुवाला
आहार लेना सो सातवा उन्मिश्र दोष ७; फल-शाकादि अचित्त हुए विनाही लेना सो आठमा अपरिणत दोष ८, अकल्पनीय | वस्तुसे लिप्त हाथ या भाजनसे आहार लेना सो नवमा लिप्त दोष ९, दुध-दही-घृत वगैरह के जमीनपर छींटेगिरते हुए आहार | लेना सो दशवा छर्दित दोष १०,
इस प्रकार ४२ दोषों में से कितनेही दोषतो आहार बनानेमें व देने वालोंसे छ कायकी विराधनादि पूर्वकर्ममें लगते हैं. |
RASARAMA
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