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________________ बृहत्सं ॥ १४ ॥ बच्चेव दाहिणे नवा ॥ तिमेव य कोडी, लरका बावठि उत्तर ॥ २५ ॥ रय गाए दिहुवरिं, जोयणसहसं विमुत्तु ते जवणा ॥ जंबुद्दी वसमा तह, संख म संखि विचारा ॥ २६ ॥ चूडामणिफणि गरुडे, वजे तद कलस सीह अस्से ॥ गय मयर व हमाणे, प्रसुराई मुसु चिंधे ॥ २७ ॥ असुरा काला ना गुद, हि पंकुरा तह सुवम दिसि यणिया ॥ कणगान विजु सिहि दी, व अ रुण वाऊ पिअंगुनिजा ॥ २८ ॥ असुराणवचरत्ता, नागो दहि विकु दीव सि हि नीला || दिसि यणि सुवन्नाणं, धवला वाऊण संऊरुई ॥ २९ ॥ चउस | हि सहि सुरे, बच्च सदस्साई धरणमाईणं ॥ सामाणिया इमेसिं, चउग्गुणा आयरकाय ॥३०॥ रयणाए पढमजोयण, सदसे हिहुवरिं सय सय विदू ॥ वंत रियाणं रम्मा, जोमा नगरा प्रसंखिता ॥ ३१ ॥ बादिंवा अंतो, चनरंस दो कलियायारा ॥ जवणवईणं तद वं, तराण इंदभवणान नायवा ॥ Jain Educationaal For Personal and Private Use Only प्रकरण. ॥ १४ ॥ jainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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