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________________ प्रा०ड० ॥ १०८ ॥ नार, य, वली मुजने श्रीसिद्ध शरण होय, मुजने श्रीकेवलिजाषित जिनधर्म शरण होय, वली मुजने सदैव श्री साधु शरण होय ॥ १२ ॥ मंगलिकनो करनार, दुःखथी राख जे शील रूप संनाने पहेरीने कंदर्पने उतावलो वेगे करीने जीततो दवो, ते श्री युलिने नमस्कार हो ॥ १३ ॥ ॥ गृहस्थ थकां पण जेने महोटी शीलनी लीला | सदा ॥ १२ ॥ नमः श्रीधूलिनाय, कृतनाय तायिने ॥ शीलसन्नाहमा विद्, यो जिगाय स्मरं रयात् ॥ १३ ॥ गृहस्थस्यापि यस्यासन्, शीलली ला महत्तराः। नमः सुदर्शनायास्तु, दर्शनेन कृतश्रिये ॥ १४ ॥ धन्यास्ते कृतपु ण्यास्ते, मुनयो जितमन्मथाः ॥ याजन्मनिरतीचारं, ब्रह्मचर्यं चरंति ये ॥ १५॥ थइ, जलुं समकित तेणे करी कीधी बे शोजा जेणे एवा श्री सुदर्शन शेठने नमस्कार | हो ॥ १४ ॥ ॥ जेमणे कंदर्प जीत्यो बे, वली जन्मश्री मांगी अतिचारना दोष रहित जे शील प्रत्यें पाले बे, ते धन्य पुण्यना करनार यति जाणवा ॥ १५ ॥ " ॥ ॥ Jain Educationanal For Personal and Private Use Only वर्ग 1 ॥ १०८ ॥ lainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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