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________________ IN मार्गे चालतो थको तंबोल न खाय, तथा पुण्यवंत होय ते श्राखी सोपारी वगेरेने दांतें । करी नांजे नही ॥६३॥ ॥जम्या पली जनालाविना निझा करे नही, केमके,दिवसें । सूवा थकी शरीरने विषे रोगोत्पत्ति थाय ॥ ६ ॥ ॥ इति श्रीश्राचारोपदेशे द्वितीय नीयाधिचरन्पथि ॥ पूगाद्यमदतं दंतैर्दलयेन्न तु पुण्यवित् ॥६३॥नोजनादनु INनो स्वप्यादिना ग्रीष्मं विचारवान् ॥ दिवा स्वपयतो देदे, जायते व्याधिसंभवः । d॥६४ ॥ इति श्रीआचारोपदेशे द्वितीयवर्गः समाप्तः ॥२॥ अथ तृतीयव भी प्रारंनः॥ ततो गेदे श्रियं पश्यन्, विजोष्ठीपरायणः॥सुतादिन्यो ददबिदा, सुखं तिष्ठेवटीयम् ॥१॥अत्मायत्ते गुणग्रामे, दैवायत्ते धनादिके ॥ वि वर्ग संपूर्ण॥शतेवार पड़ी घरनी शोजाप्रत्ये जोतो थको पंडितनी साथे वातचित कर तो, पुत्रोदकने शीखामण देतो सुखें समा बे घडी पर्यंत घरने विषे रहे ॥१॥ गुणनो समूह पोताने वश , श्रने धनादिक तो लाग्यने हाथें बे, एम समस्त । Jain Educational For Personal and Private Use Only
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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