SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रानपाखडीनां कमल, तथा बीजां पण फूलें करी, संसारना नाश करनार, करुणायें करी प्रधान, एवा जगवंतने ढुं पूजु बु ॥ १६ ॥ इति द्वितीया पुष्पपूजा ॥५॥ ॥ १॥ | काला अगरनो करेसो साकर सहित घणा करें करी सहित घणा यत्ने कस्यो बहु हर्ष थापनारो एवो धूप नक्तियें करी महारा पोताना पापनो नाश करवाने श्रर्थे हुँ करणं करुणाप्रधानं, पुष्पैः परैरपि जिनेन्जमदं यजामि॥१६॥ कृष्णागुरुप्रचुना रितं सितया समेतं, कर्पूरपूरमहितं विहितं सुयत्नात् ॥ धूपं जिनेंपुरतो गुरु ना तोषपोषं, नत्त्योदिपामि निजउष्कृतनाशनाय ॥१७॥झानं च दर्शनमयो || चरणं विचिन्त्य, पुंजत्रयं च पुरतः प्रविधाय नत्त्या।चोदाढतैः कणगणैरपरै ।। नगवंत श्रागल उखेवं दुं ॥ १७॥ इति तृतीया धूप पूजा ॥३॥ ॥ ज्ञान, दर्शन श्रने । चारित्र ए त्रण नाव मनमां चिंतवी त्रण ढगला श्राखे खन चोखायेंकरी तथा वीजा || ॥ पण सारा कण धान्य तेणेकरी जगवंत पागल करीने ते जगवंत श्रीश्रादीश्वर प्रत्ये १ ॥ Jain Educational For Personal and Private Use Only Minelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy