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________________ शोजतो, विज्ञानने मान श्राप तथा लोकने रीजवनुं तेनेविषे सावधान, एवो श्रा वक इहलोक छाने परलोकसंबंधि पोताना बे जन्म सफल करे ॥ ६२ ॥ ॥ इति श्री रत्नसिंहसूरि, तत् शिष्य श्री चारित्र सुंदरगणिना विरचित श्राचारोपदेशग्रंथ मां प्रथमपो समग्रं श्रादो विशुद्ध विनयो नयराजमानः ॥ विज्ञानमानजनरंजनसावधा नो, जन्मइयं विरचयेत्सफलं स्वकीयम् ॥ ६२ ॥ इति श्रीरत्नसिंहसू रिशिष्य श्रीचारित्र सुन्दरगणिविरचिते आचारोपदेशे प्रथमप्रदरवर्गः ॥ १ ॥ अ य स्वमन्दिरे यायाद्, द्वितीये प्रहरे सुधीः ॥ निर्जन्तु जुवि पूर्वाशाभिमुखः स्ना नमाचरेत् ॥ २॥ सप्रणालं चतुष्पाद, स्नानार्थं कारयेद्वरम् ॥ तते जले य | दोरवर्गनो बालावबोध संपूर्ण ॥ १ ॥ ॥ दवे बीजे पोहोरें ते पंमित पोताने घरे ज‍ जीव रहित धरतीने विषे पूर्व दिशि सन्मुख बेशीने स्नान करे ॥ १ ॥ ॥जला परनाला सहित | बाजोठ स्नानने अर्थे करावे, ते उष्ण पाणी बाजोठमां रह्याथी जीवनी हिंसान थाय ॥ २ ॥ Jain Education honal For Personal and Private Use Only Tjainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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