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________________ होय, ते सर्व तपस्यायें करी सधाय जे. ते तपने पोताना गुणे करी उबंधन करी जाय IN एवं बीजं साधन नथी ॥ ५५॥ ॥ हवे बजारमा जश् धर्मनो विधियें करीने पं मीत, अव्य कमावानो पोतपोतानो व्यापार करे ॥ ५६ ॥ ॥ मित्रना उपकारने अर्थे, बंधु एटले नाश्ना उदयने अर्थे, उत्तम पुरुष लक्ष्मी उपार्जन करे, केवल पो ॥ चतुष्पयं ततो यायात्, कृतधर्मविधिः सुधीः ॥ कुर्यादर्थार्जनोपाय, व्यवसायं निजं निजम् ॥५६॥ सुहृदामुपकाराय, बन्धूनामुदयाय च ॥ अय॑ते विनवः सन्निः, स्वोदरं को बिनर्ति न ॥५॥ व्यवसायनवा दृत्तिः, सोत्कृष्टा मध्यमा कृषिः॥ जघन्या जुवि सेवा तु, निदा स्यादधमाधमा ॥५॥ ॥ तानुं पेट तो कोण नथी जरतो? ॥५॥ ॥ व्यापारनी श्राजीविकायें पेट जराय, N ते उत्कृष्ट आजीविका जाणवी, खेतिवामी करी आजीविका चलाववी ते मध्यम जाणवी, पारकी सेवा करी श्राजीविका चलाववी, ते पृथिवीने विषे जघन्य जाणवी Jain Education II For Personal and Private Use Only iainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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