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श्राग्न शान पामे, सांजव्याथी वैराग्य पामे ॥ ४ ॥ ॥बे हाथ, बे पग श्रने मस्तक ए वर्ग ?
पंचांग खमासमण गुरु अने वीजा साधुने देईने गुरुनी आशातना गंमतो थको धर्म ॥ज्द॥
* सांजलवा बेसे ॥४५॥ ॥ मस्तकें बे हाथ लगामीने बे ढिंचणे करी धरती प्रत्ये विधि
वैराग्यमेव च ॥ ४४ ॥ पंचाङ्गप्रणिपातेन, गुरून साधून्परानपि ॥ उपावि
शेन्नमस्कृत्य, त्यजन्नाशातना गुरोः॥ ४५ ॥ उत्तमाङ्गेन पाणिन्यां, जानुन्यां । INच नुवस्तले ॥ विधिना स्पृशतः सम्यक्पंचाङ्गप्रणतिर्नवेत् ॥ ४६॥ पर्यस्थि ।
कां न बनीयान्न च पादौ प्रसारयेत् ॥पादोपरि पदं नैव, दोर्मूलं न प्रदर्शयेत् | Lalu ॥न पृष्ठे न पुरो वापि, पार्श्वयोरुनयोरपि ॥ स्थेयान्नालापयेदन्य, मा।
सहित सम्यक् प्रकारें फरसीयें, ते पंचांग नमस्कार कहीयें ॥४६॥ ॥ गुरुपासें बेग IN पग न बांधीयें, पग लांबा पसारीयें नही, पग उपर पग न चडावीयें, बे कांख उंची
करीने नही देखाडीयें ॥ ४ ॥ ॥ गुरुनी पाउल बेसे नही, बागल बेसे नही, जमणे ।
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६॥
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