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धयार नजोय, पत्ना गया तवेदिआ॥ वन्न गंध रसा फासा, पुग्गलाणं तु, लकणं ॥११॥एगाकोडिसतसहि, लका सत्तहुत्तरी सहस्सा य॥ दोयस या सोलहिया, आवलिया ग मुहुत्तम्मि ॥ १२ ॥ समयाऽवली मुहुत्ता, दीदा परका य मास वरिसा य॥नणि पलिआ सागर, नसप्पिणी सप्पिणी कालो॥ १३॥ परिणामि जीव मुत्ता, सपएसा एग खित्त किरिआए॥ निचं
कारण कत्ता, सबगद मिदि रदिअपवेसे ॥१४॥ इत्यजीवतत्वम् ॥ सा उच्च लागो य मणु उग, सुर उग पंचिंदिजाइपणदेहा ॥ आश् ति तणू णु वंगा, आज
श्म संघयण संगणा ॥१५॥ वन्नचनका गुरु लहु, परघा ऊसास आय वु| जोयं ॥ सुलखगइ नमिण तस दस, सुर नर तिरियान तिबयरं ॥१६॥त । स बायर पजत्तं, पत्तेयथिरं सुन्नं च सुन्नगं च ॥ सुस्सर आइज जसं, त साइ दसगं श्मं हो॥१७॥इति पुण्यतत्वम् ॥ नाणंतराय दसगं, नवबीये
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