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| श्री चिंतामणि पार्श्वनाथाय नमः ॥ ॥ श्री धन्नाशा लिननो रास ॥
॥ दोहा ॥ इति क्रम कमल, स्वस्तिश्री गुण धाम ॥ वीर धीरनिपति प्रते, प्रेमे करूं प्रणाम ॥ १ ॥ वसुधामे विद्या विपुल, वर दाता नितमेव ॥ समरुं चित चोरके करी, ते प्रतिदिन श्रुतदेवि ॥ २ ॥ गुरु चरणांबुज सेववा, मुज मन मधुकर लीन ॥ नपगारी अवनी तले, गुरु सम को न प्रवीन ॥ ३ ॥ सिद्धाचल वैनारगिरी, अष्टापद गिर नार । समेतादि ए पंच वर, तीर्थ नमुं नित सार ||४|| संघ चतुर्विधने सदा, त्रिकरण शुद्ध त्रिकाल || वंडु विधि वंदन थकी, सुकृत करण सुविशाल ॥ ५ ॥ धर्म चतुर्विध नपदिशो, जगपति जन हित काज ॥ दान शियल तप जावना, जलनिधि तरल जिहाज ॥ ६ ॥ यतः ॥ नृपजातिवृत्तम् ॥ दानं सुपात्रे विशदं च शीलं तपो विचित्रं शुभ भावना च ॥ नवार्णवोत्तारण यानपात्रं, धर्मं चतुर्द्धा मुनयो वदंति ॥ १ ॥ जावार्थ:- सुपात्रने विषे दान आपकुं, निर्मल शील पाल, विचित्र प्रकारनो तप करवो अने शुभ जावना जाववी; एरीते नव रूप समुश्री पार पमावाने काज समान एवो चार प्रकारनो धर्म, मुनियो नृपदिसे बे ॥ १ ॥ प्रथम दान पद धर्मना, दाख्या पंच प्रकार || अजय सुपात्र अनुकंप
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