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________________ धन्ना० ३ ॥ रे, मुज हुंती निरधार ॥ धन्नकुमर मन धीर घरी तिदां रे ॥ १ ॥ ए प्रांकली. ॥ श्रई निशा ये की नीसयो रे, साहसिक थइ सुविवेक ॥ स्वरबल साधीने ते संचरे रे, शुकन थया शुभ बेक ॥ ६० ॥ २ ॥ अनुक्रमे कौतुक विधि निहालतो रे, पहोत्यो काशी देश ॥ वाणार शी पुर पासे श्रावीयो रे, जोवे नगर निवेश ॥ घ० || ३ || पार्श्व सुपार्श्व जिणंदना जन्मनो | रे, ए उत्तम अहिाण || देखीने मनमां सुख कपन्यो रे, जन्म थयो सुप्रमाण ॥ ६० ॥ ४ ॥ गंगा तीरे निरमल नीरमां रे, करे जलक्रीमा काम ॥ एहवे श्रावी अंबरथी तिहां रे, गंगादे वी ताम ॥ घ० ॥ ५ ॥ देखी धन्नकुमरना रूपने रे, मोही मनमें अत्यंत ॥ पंच विषय सुख विलसण तेहथी रे, खरी राखे मन खंत ||६० || ६ || वैक्रिय रूप विकूर्वी ने नवो रे, प्रपन्चर सम अदभूत | हाव जाव विक्रम करिने तिहां रे, वचन वदे सदभूत ॥६॥ ७ ॥ स्वामी हुँ तुम सेवक हूं सदा रे, नेहथकी लयलीन || प्रीत बंधाली प्रेम रसे करी रे, जेहवी जलने मीन ||०|| || पंच विषयसुख मुज साधे मुदा रे, जोगवो जाग्य निधान ॥ हूं हूं गंगादेवी गुण जरी रे, जाली यो मुज मान ॥ घ० ॥ ॥ यतः ॥ श्राया श्राश करेय, तास निराश न मूकीए । निपटजना कारेश, निरसुं दीसे नागरा ॥ १ ॥ तुम गुण रूप लावण्य लीलायकी रे, हुं मोदी सुप्रकास ॥ विनती मानी वालेशर माहरा रे, आवो मुज आवास ॥ ६० ॥ १० ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International नु० १ ३ www.jainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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