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________________ धन्ना०वेचवा काजे दीघोरे ॥ जु॥॥ वात गनी ते नाव रदी, राजाये जब जाणी रे ॥ अनु न चर मूकी आपणा, धन लीधो सवि ताणी रे॥जु ॥१०॥ काईक बाकी रह्यो हतो, तेह गया चोर लेई रे । सेवक संबंधी हता, ते पिण ले गया केई रे ॥ जु०॥ ११ ॥जलवटनो 8 * जलवटे गयो, नूमीश्री लेई गया यह रे ॥ नाग्यहीननो ततकणे, फल दागे परतह रे॥ जु॥१२॥ गृहपातन अनले कस्वां, तव रदेवानो नही लागो रे ॥ कुकीसंबल घई नीस है। स्या, जिम शषि नपने वैरागो रे ॥ जु०॥१३॥ यतः॥ दिवस पलट्यो ही बुरो, जागि श ४ के तो जाग ॥ पाणी नपर पवर तरे, सोने सलगी आग ॥१॥ फिरता देश विदेशमें, नद | 19 रनो तरण वहंता रे ॥ शीत तापादिक अति घणा, ते पिण सकल सहता रे ॥ जु० ॥१४॥ यहां आव्या तुमने मिल्या, दवे अम सहु कुःख नाग्यां रे ॥ कुलदीपक तुम पेखतां, सुकृत है। तणा दिन जाग्या रे ॥ जु० ॥१५॥ नाई पिण भावी मिल्या, कपटथी हेत नपाई रे॥ अधिक आनंद श्रको तिहां, आवी मिली नोजाई रे ॥ जु० ॥१६॥ सयल सयण हुआ साम 18टा, धनो मन सुख पावे रे ॥ बीजे नल्हासे पांचमी, जिन मन रंगे गावे रे ॥ जु॥१७॥ - ॥दोहा. ॥ धन्नाशाहे नेहज धरी, तात प्रमुख तिणिवार ॥ गुप्तपणेथी लेश्ने, आ १ अग्नि थवाथी घर बनी गया. Jain Educational international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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