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________________ धनTo ३७ | |रे ॥ १६ ॥ पुरजन प्रते पोखे रे, नृपने संतोखे रे ॥ कोई बुद्धि विशेषे रे, सुपरे जाग्यथी रे ॥ १७ ॥ यतः ॥ मालिनीवृत्तम् ॥ नरपति हितकर्त्ता द्वेषतांयाति लोके, जनपद हितकर्त्ता त्यज्यते पार्थिवेन ॥ इति महति विरोधे वर्त्तमाने समाने, नृपति जनपदानां दुर्जनः कार्य| कर्त्ता ॥ १ ॥ जावार्थ:- राजानुं सारुं करनार माणसना उपर लोको द्वेष राखे बे, देशनुं सा रुं करनार पुरुष, राजावने त्याग कराय बे; एवो महोटो ने सरखो विरोध वर्त्तते ते, राजानुं अने देशनुं जलुं करनार तो उर्लनज मली आवे बे. ॥ १ ॥ नृप दत्त आवासे रे, र| देतां सुखवासे रे ॥ जुए मनने उल्लासे रे, पुर शोना जली रे ॥ १८ ॥ कल्पद्रुम रासे रे, जिन कहे सुविलासे रे || एह बीजे नव्हासे रे, ढाल चोथी सदी रे ॥ १८ ॥ ॥ दोहा ॥ दीवा दूरथी आवतां, १पांशु विलिप्त शरीर ॥ मलिन वसन शत खं तस, मात पिता तिम वीर ॥ १ ॥ कांति दिए कुत्सितपणे, जन जांग ग्रही हाथ ॥ दीन | खीण दीवी तिहां, जोजाई पिए साथ || २ || देखी चिंते धन्नकुमर, विस्मयश्री चित्तमांदि ॥ मात पितादिक मादरा, किम आवे ईरा गहिं ॥ ३ ॥ श६ि घणी के तस घरे, पुण्यथकी सुविलीन | ते किम संभविये इहां, एदतो दीसे दीन ॥ ४ ॥ दीसे वे तेह्र सारिखा, ते पि १ धूल. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ०१ ३७ www.jainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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