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________________ धन्ना० कीधो, तिहांथी एणे धन बहु लीधो रे ॥स०॥ वली होमे घेटो लमायो, तिहाथी पिण स! ३३ । बलो फाव्यो रे ॥स०॥ ३ ॥ देखो कृपणनी खाट ते लोधी, मनमें तस सूग न कीधी रे॥ स०॥तिम लवण कलशमें खाट्यो, एणे लोने लक्षण दाट्यो रे ॥स०॥॥ मात तात नो त जाई साथे, धन देई करयां सह हाथे रे ॥स०॥ एह आपणने न बोलावे, अम दरशन पिण न सुहावे रे ॥ स०॥५॥ एद आपणथी रहे अलगो, तो किम जाईजे विलग्यो रे ॥ स०॥ सही एहमें तो स्नेह न कांई, एह तो नामथी कहीए नाईरे ॥स ॥६॥ हवे एहने तो सही हणीए, ईहां पापने दोष न गणीए रे ॥ स॥ विष शस्त्रादिक कोई कीजे, एहने १५-5 चत्व पद दीजे रे ॥ स०॥७॥ उल जोता रहे त्रिण्ये नाई, ते जाणे सकल नोजाई रे॥ स०॥ लवलेश देवरने दाखे, तेह गुह्य धन्नो चित्त राखे रे॥ साायतः।। वंशस्थवृत्तम्॥ नदीरितोर्थः पशुनापि गृह्यते, हयाश्च नागाश्च वहंति नोदिताः॥ अनुक्तमप्युदति पंहितो जर नः, परेंगित ज्ञानफला हि बुझ्यः॥१॥नावार्थः-कहेलो अर्थ तो, पशु पण जाणी शके 3/; घोमा अने हाथीन तेनने हांकीए तो, ते पण चाले बे; परंतु पंमित पुरुष तो वगर कहे-15 ॐ बुं पण तर्कथी जाणी जाय . माटे परना मनमा रहेली वातने जाणनारी ज्ञानरूप बुद्धि १ मरण. *ॐॐॐॐ Jain Education national * For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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