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________________ 25ESHRASE लोके ईजत घटे, परन्नव पिण न खटाय ॥२॥ होम न कीजे होशश्री, होम की धन न०१ हाण ॥ नलराजा होमे करी, पाम्यो दुःखन। खाण ॥३॥ पांडव पांचे वन वश्या, होमे हारी राज्य ॥ सात व्यसन मांही प्रथम, एहिज कार्य अकार्य ॥४॥ यतः॥ नपजातिK वृत्तम्. ॥ द्यूतं च मांसंश्च सूरा ३ च वेश्या ५, पापईि चोरी ६ परदार सेवा ७॥ एता निः सप्त व्यसनानि लोके, घोरातिघोरं नरकं नयंति ॥१॥ नावार्थः-जूवटुं, मांस, मदिरा, वेश्यागमन, आहेमीकर्म, चोरी अने परस्त्रीगमन, आ सात व्यसनो अति घोर नरकने विषे लेई जाय ॥१॥ जे माटे ए होमथी, लाव्यो धन बेलक ॥ अमने ते कारण 3 श्रकी, ष वधे परतत ॥५॥ तात कहे तमे द्यूतनी, वात कही हित काज ॥ पिण बुझे ke कर लीजिए, वंबित सिदिसमाज ॥६॥नाग्यबले बुझेकर, चिंतित कार्य करत ॥ना | ग्यहीन नद्यम करे, ते सवि निष्फल जंत ॥७॥ ॥ ढाल १५ मी.॥ (ते तरिया नाइ, ते तरिया नाइ.-ए देशी.) __ कहे धनसार सुणो रे पूता, तुमे कां एम विगता रे ॥ कुमति रूप कादवमां खूत्या, 8/ | बोलो गे जेम कूता रे ॥ कहे धनसार सुणो रे पूता ॥१॥ए आंकणी ॥ नाग्यहीन तुमे | है परतख दीसे, शुं कहीए करि रीसे रे ॥ मूल व्य संन्नारो खोने, पडे नांखो सुजगीसे २५ Jan Education afternational For Personal and Private Use Only wwwjainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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