SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उहक ऊतावलो, समरे श्री गुरु देव ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ६ सी. ॥ (गूरांजी थे मने गोमे न राख्यो.-ए देशी.) एहवे देशांतरि एक प्रेष्यक आयो, महेश्वरदत्त मन नायो हो ॥ सुनग सनेही साजन, अचरिज पेखो॥ ए आंकणी ॥ लेख अनोपम तेणे ततक्षण दीघो, महेश्वरे कर धर। लीधो हो । सुन्नग ॥१॥ गुप्तपणे तेणे वचनज कीधो, मनह मनोरथ सीधो हो ॥ सु॥ लेखमें लिख्यो मित्र सुमित्रे विचारी, स्थानपुरथी सुखकारी हो ॥ सु० ॥ २ ॥ ननर दिशिथी ए सार्थप सूरो, सकल क्रयागके पूरो हो ॥ सु॥ आवे ए पश्गणपुर पासे, ४ व्यवसायार्थे विलासे हो ॥ सु० ॥ ३ ॥ तेह नणी एने तुमे सनमुख जाज्यो, नेट मूकीने, मित्र श्राज्यो हो । सु०॥ दाय नपाय करी हाथे करेज्यो, पठे क्रियाणक सवि लेज्यो हो ॥ सु०॥४॥ लान घणो ले एहमां सनिलो नाई, खोट नहीं ले एहमां कोई हो।सुकाए | क पांती अमने तुमे देज्यो, पिण एह काज करेज्यो हो । सु०॥५॥ एहवो अवसर फि-४ रीने नहीं आवे, घj घणुं लिखे शं थावे दो ॥सु ॥ पत्र वांचीने महेश्वर मन हरख्यो, मित्रने साचो करी परख्यो हो । सु०॥६॥ चित्त में चिंते एह कार्य महोटो, नन्दकपलो हां खोदो हो।सु०॥ प्रथम तो घेर जश्नोजन कीजे, नीति वचन चित्त लीजे हो ॥ है . Jain Education national For Personal and Private Use Only Clainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy