SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अमने वीसरशे नही रे, जीवंतां लगे जोर ॥ अंगण आव्या पिण नवि नलख्या रे, ते अम 18 कर्म कगेर ॥ ना०॥ ११॥ तुमे तो बालपणाथी प्रीतमी रे, पाली पूरण प्रेम ॥ वचन वि रोध न कीधो कोयथी रे, सहुगू चिंतव्यो खेम ॥ ना ॥१॥ हवे इण वेला बोलावो मु खे रे, एटले लाख पसाय ॥ अमचो जीवित सफल हुवे सहो रे, कहु बुं गोद बिगय ॥ना० २॥१३॥ इणि वेलाये अणबोल्या रहो रे, ते अम जीवित शल्य ॥ अंत समय अवगुणवो जे करे रे, ते तो मरणने तुल्य ॥ ना०॥१५॥ कर दोय जोमी खोला पारे रे, कामिनी तेह बत्रीश ॥ पिण नवि नेदे साधु शिरोमणी रे, शालिन मुनि सुजगीश ॥ ना०॥१५॥ • नयन नघामी पिण जोई नही रे, माता नामिनी कोय ॥ चोथे उल्हासे ढाल सत्तावीशमी रे, जिन कहे धन धन सोय ।। ना०॥ १६ ॥ ॥ दोहा. ॥ एहवे अन्नयकुमार तिम, श्री श्रेणिक नूपाल ॥ रुदन करतां देखिने, स 4 मजावे तिण ताल ॥१॥शो दुःख करवो एहनो, एणे अजुवाल्यो वंश ॥ जिनशासन शो || लावियो, ए उत्तम अवतंस ॥२॥धन धन ताहरी कूखने, प्रसव्यो पुत्र रतन्न ॥नोगी | | योगी जागतो, सकल कला संपन्न ॥३॥ वीरतणी तूं नारजा, वीर प्रसव सादात ॥धील रज धर चित्तमें चतुर, तूं अश् जगत विख्यात ॥ ४॥ पुत्र जमाई बिहुँ जणे, सास्यां आत ३४ JainEducation a tional For Personal and Private Use Only hinelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy