SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पि दीठा नही रे, उपन्यो मनमें जाने विश्लेष रे || शुं किहां ध्यानादिकने लेयने रे, बेबाहुशे ते शुभ स्थल देख रे ॥ ० ॥ १२ ॥ पूढे करजोमी जिनपति वीरने रे, शालिन‍ धन्नो बे किस गम रे ॥ वीर वृत्तांत सवि विवरी कह्यो रे, जिहां लगें पहोत्या असल काम रे ॥ ० ॥ १३ ॥ ततल नझ सुणि विलखी थई रे, रुदन करे तिहां प्रसराल रे ॥ दुःखथी दाजी करणीए पमी रे, तिम वली तिहां बत्रीशे बाल रे ॥ ० ॥ १४ ॥ ददमांही दायां पंख फरुफमे रे, तिम तरफ मे विरहे नार रे || चोथे नब्दासे ढाल पचवीशमी रे, कहे जिन स्नेह बंधन ते प्रसार रे ॥ श्रा ॥ १५ ॥ ॥ दोहा ॥ ना बहुअर तेमिने, चाली चतुरां वेग ॥ रुदन करती रानमें, पुत्र विरह नग || १ || पगमें खूचे कांकरा, कांटा वेस अपार ॥ कष्ट घणो खमती थकी, पहो - ती ते वैर ॥ २ ॥ गिरि उपर चढी लगथमी, देखी पोढ्या दोय ॥ घ्रतक देश धरणी ढली, मूगत इ सोय ॥ ३ ॥ पवने पामी चेतना, देखे पुत्रनुं रूप ॥ मांस रुधिर शोषीत पणे, प्रति कृश्य अस्थि सरूप ॥ ४ ॥ हाहाकार करे तिहां, पुत्र विरदथी तेह ॥ श्र शो कष्ट तें आदरयो, श्रहो पुत्र गुलगेह ॥ ५ ॥ ॥ ढाल २६ मी. ॥ ( घर आवो रे मन मोहन घोटा. - ए देशी. ) Jain Educatioaemational For Personal and Private Use Only vjainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy