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________________ धन्ना० १२३ तं सुकृतिनः परिपालयति ॥ १ ॥ जावार्थ:- शिव दजु सुधी कालकूट फेरने बोमी देतो न थी, काचबो (कपावतारमां ) जे बे, ते पृथ्वीने पोतानी पीछे घरी राखे बे ने समु दुस्सद एवी वमवानल अभिने सहन करे बे! माटे जला पंमित पुरुषो, अंगीकार करेलाने त्याग करता नथी. ॥ १ ॥ सा० प्राश्रित माटे सर्प कंठे भूषण कीयों रे लो, सा० कालकूट विष ष्ट ग्रही जण कियो रे सो ॥ सा० लक्ष्मीने जुन कृष्ण नरंगे जालवेरे वो, सा० मोरली मधुरे नाद सुसादे श्रालवे रे लो || मा० ॥ ६ ॥ सा० कहो वियुजी तुमे पुष्ट या बोशा जली रे लो, सा० श्रमचा मनमें होंश हती वल्लन घणी रे लो ॥ सा० कोई क दाखो दोष सुघोष करी मुखे रे लो, सा० के कोइ देइ आधार पढे जाज्यो सुखे रे लो ॥ मा० ॥ ७ ॥ सा० दैवप्रयोगे एम जो मति तुमची फरी रे लो, सा० नवि दीधी वली तेम ज केहने दीकर रे लो ॥ सा० पुत्रतणी तो दौश पूरी किहांथी पमे रे जो, सा० दैव संगाये जोर किसी परे निवमे रे लो || मा० ॥ ८ ॥ सा० ते जणी वाल वे चार हुवे श्रमचे यदा रे लो, साप ते आधार उदार होशे अमने तदा रे लो || सा० पवे सुखे लेजो दीख कहुँ बुं आजथी रे लो, सा० यदवा तदवा बोल न बोलूं लाजश्री रे लो || मा० ॥ ए ॥ सा० वय श्रमची लघु देखि दया नथी श्रावती रे लो, सा० जे जिनधरममें सार कही बेते वती रे For Personal and Private Use Only Jain Educationa International उ०४ १२३ w.jainelibrary.org.
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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