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________________ ब । 4 धन्ना आवे जन प्रते, ले चाले ततकाल ॥२॥ जरा आवशे वेगथी, तनु नपजशे रोग॥ पंचेंदिन १२२ य बल हारशे, तव नही धर्म संयोग ॥३॥ यतः॥ शार्दूलविक्रिमीतवृत्तम्. ॥ यावत् स्व- 21 19 स्थ मिदं शरीरमरुजं यावऊरा दूरतो, यावचेश्यि शक्तिरप्रतिहता यावञ्चिरोवायुषः॥यात्म श्रेयसि तावदेवहिजनैः कर्त्तव्यधर्मोद्यमः, संदिप्ते नुवने हि कूपखननं प्रत्युद्यमः कीदृशः ॥ १॥नावार्थः-ज्यां सूधी, आ शरीर स्वस्थ अने रोग विनानु , वृक्षवस्या वेगली, इंदि योनी शक्ति कायम अने आयुष्य लांबुने; त्यांसूधी माणसोए पोताना आत्म कल्याण ने अर्थे धर्मोद्यम करवो जोइए; परंतु घर लाग्या पली कूवो खोदवानो नद्यम करवो, ए| * केवो? नकामो! ॥१॥ ते नणी अनुमति द्यो दवे, जिम संन्ना आप ॥ वीर वचन दिल । & में धरी, अजुवालूं मा बाप ॥ ४ ॥ एहवे वत्रीशे मिली, कामिनी करे विचार ।। कंते हठ मांड्यो अ, लेवा संयम नार ॥५॥ सासूजी सुपरें कह्यो, घरवट वात विचार ॥पिण नवि माने वचन तस, आपमती जरतार ॥६॥ नीति रीतथी नांखीयो, स्वामीशू धरी स्नेह ॥ कंत विना शां कामनां, ए धन नूषण गेह ॥ ७॥ & ॥ ढाल १ मी॥ (जिनजी चंझनू अवधारो के नाथ निहालजो रे लो.-ए देशी.) साहिबा तव बत्रोशे नार मिली कहे नाहने रे लो, सा० अति आकूलथी ताम के पा-१ Jain Education National For Personal and Private Use Only nelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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