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________________ पंखी पंजर पड्यो, जोवे बूटण लाग ॥३॥ चित्तमें चिंतवते अके, नपनी बुदि अनूप ॥ प्र मदा बंडु प्रति दिवस, एकेकी धरि चूंप ॥४॥ हलवे हलवे विषय सुख, उमणनी धरूं टेव । ४॥ अनुक्रमे अनुमति लेयने, वरशुं संयम हेव ॥ ५॥ जिम जिम परणीती मुदा, तिम ति || म तनुं निदान । नियति धरी ते दिन भकी, मे धरी सुज्ञान ॥६॥ प्रथम दिवस मोनिPण तजी, तिणे तव लाध्यो दाव ॥ वांक सकल ते में कियो, ते दाख्यो प्रस्ताव ॥ ७॥ दिन 2 बीजे बीजी प्रते, गेमण कीध प्रपंच ॥ ते पिण विलखित वदनथी, चिंते ए शो संच ॥॥ पत्रीजे दिन त्रीजी तिमज, मी तरुणी जाम ॥ तव सघली चित्त चिंतवे, अहो रॉ ए करे आम ॥ ए ॥ अनुक्रमथी ए मशे, अमने सहि जरतार ॥ नावीश्री बल कोयनो, चाले । नहि लिगार ॥१०॥ ॥ ढाल १७ मी.॥ (हरियां मन लाग्यो.-ए देशी.) एहवे ते धना गृहे, सतीय सुन्नश विख्यात रे ॥ स्नेही सुण मोरा ॥पतिने स्नान करावते, चित्त सांतरियो जात रे ॥ स्नेही सुरण मोरा ॥ एहवे०॥१॥ ए आंकणी ॥ मस * मसती रूदन करे, नयनश्री नीर प्रवाह रे ॥ स्ने०॥ गती मांहे जागीयो, विरह दावानल दाह रे ॥ स्ने०॥ ए॥२॥ देखी दयिता दूबली, दीन वदन विवाय रे ॥स्ने०॥ पूछे धनो । Jain Education national For Personal and Private Use Only 1 w .jainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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