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________________ न०४ ११४ धन्ना०य पमी, नज्ञ करे विचार ॥ व्रतनी वात किशी करे, बालक शालिकुमार ॥ ४ ॥ ॥ ढाल १६ मी.॥ (निझी वेरण हुइ रही.-ए देशी.) नज्ञ कहे नली नातिशु, शीख सांनल हो तुं सुगुण सुपूत्र के ॥ आलालंबन सम | सही, तुजश्री ले हो मुज घरनो सूत्र के ॥ ॥१॥ए आंकणी ॥ वय लघु ताहरी विचार तुं, तुज दयिता हो ते पिण सवि बाल के ॥ संतानादिक पिण नही, ते माटे हो जून हृदय निहाल के॥न०॥॥नीतिमें पिण श्म सनिल्यो, वय पहिलीये हो विद्या अन्यास के ॥ बीजी वय सुख विलसवां, त्रीजी वय हो व्रत ग्रहण आयास के ॥०॥३४ ॥ यतः ॥ अनुष्टुब्वृत्तम्. ॥ प्रथमे नाढिता विद्या, हीतिये नार्जितं धनं ॥ तृतीये नाढितो धर्मः, चतुर्थे किं करिष्यसि ॥१॥नावार्थः-जो ते पहेली वयमा विद्या संपादन न करी, बीजी वयमां धन संपादन न करयुं अने त्रीजी वयमां धर्मसाधन न कस्यो; तो चोथी वय - मां तुं शुं करीश ? अर्थात् धर्मसाधन करवानो अवसर तो त्रीजी वयमा ने. तो ते नीति व चन नखंघीने हाल करवा केम तैयार थयो बुं ?॥१॥ते नगी घमपणमें तुमे, श्रावकत्र-18 त हो धरज्यो थई धीर के ॥ निरतिचारे पालतां, सुख लहीए हो अति दिव्य शरीर के ॥ न॥४॥ वालपणे व्रत ते ग्रह, जस होवे हो दुःख सबल संसार के ॥ खावा पीवा पिण११५ Jain Educational Lonal For Personal and Private Use Only ainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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