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________________ धन्ना जीवदया जिनधर्मनो, कह्यो मूल सयल संसार र ॥ क॥ सु॥णा त्रस पावर सवि जी ०४ ११३ 18 वनी. रक्का करवी ते नित्य रे॥ मन वच कायाधीकरी. दया वीडा विश्वाथी पवित्र रे ॥ द॥ सु० ॥१७॥ हिंसा करे ते दु:ख लहे, न लहे सुख कदिय लिगार रे ॥ सुनूम ब्रह्मदत्त न द सारिखा, हिंसाश्री नरक महार रे ॥ हिं०॥सु॥११॥ए पहिलो व्रत साधुनो, बीजे मृषा वादनो त्याग रे ॥ क्रोध लोन नय हास्यश्री, जूगे न कहे महानाग रे ॥जू ०॥सु०॥१२॥ 5 जूठे वसुराजा जून, नरके गयो देव प्रकोप रे ॥ ते नणी सत्यज बोलवो, जिम थाए पुरि 18/ तनो लोप रे ॥ जि०॥ सु॥१३॥ अगदीधो लेवो नही, तृणमात्र ते साधुने कोय रे ॥ चोरीथी दुःख नीपजे, हुंमक परे शास्त्रमें जोय रे ॥ हुं०॥ सु०॥१४॥ चोथु व्रत चोरके चिर ते, पालवू मननी शुहिरे ॥ नारी रूप न देखQ, लेखवयु नपलनी बुहिरे ॥ ले ॥सु है २॥ १५ ॥ कुंमरिक नंदिषेण जे, अर्हनक आकुमार रे ॥ विजयमुनीश्वर तिम वली, रहने मि प्रमुख अणगार रे ॥२०॥सुण॥१६॥ नारी देखीने चल्या, पाग वल्या पुण्य प्रयोग रे ४॥ते नणी नववामे करी, व्रत पालवो धरी नपयोग रे ॥ ७० ॥सु ॥१॥ तृण तूसमात्र न / है राखवो, परिग्रह ममताथी धीरे॥परिग्रहथी नरके गया, नवनंदन सागरशेठ रे ॥ न०६ ॥ सु० ॥१॥ रात्रिनोजन गंवो, त्रिविधे त्रिविधे थर धीर रे ॥ ए मुनिव्रत विवरी कयां, ११ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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