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________________ घन्ना० INTERAKSTU चार रे॥श्रे०॥१७॥पूर्वे कदिय न सानल्यो रे, कार्यतणो लवलेश ॥ते निसुणी चित | चिंतवे रे, ए शू कहे मात विशेष रे ॥ श्रे॥१॥ रे माता! तुमे शू कह्यु रे, में नवि लाध्यो नेद ॥ चोथे नल्हासे ग्यारमी ढाल, जिन कहे धरी नमेद रे ॥ श्रे०॥ १० ॥ ॥ दोहा. ॥ अ॒ पूगे गे मातजी, व्यवसायादि विचार ॥श्रेणिक लेई सामटो, नरो मंजूष मकार ॥१॥नज्ञ कहे रे पुत्र सुण, नहि किरियाणो एह ॥ त्रिन्नुवन मांहे अमू ल्य , रूप कला गुण गेह ॥२॥ तव त्रटकी कहे मातजी, एवमो शो आलोच ॥ मुह ४ माग्यो धन देयने, राखो थानक टोच ॥ ३ ॥ नज्ञ कहे रे नूल मां, वचन विचारी बोल ॥ लादेश मगधनोले धणी.इंडसमान अतोल॥४॥दय गय रथ पायक तणो.कोय न लाने पार ॥ आपण सरिखा एहने, व्यापारीलख सार ॥५॥आपण ऊपर एडनो, हितले त हां लगें सर्व ॥ आपणने आधीन , बंमो ते जणी गर्व ॥६॥ यतः॥ सासा१ पासाश् अ गनि३ जलभ, ठगए गकुर६ सोनार॥ एता न हुए आपणा, मंकम बडुअए बिलामर० ४॥१०॥नावार्थः-श्वासोश्वास, पासा, अग्नि, पाणी, ठग, राजा, सोनी, मांकम, बडुन अ५ ने बिलामी, ए सर्वे आपणा न होय. ॥१॥ भावी प्रणमो एहने, मनश्री मूकी मान ॥र्व १ राजा कानना सूना होय , माटे तेपनो विनय अवश्य करवो जोइए. Jain Education national For Personal and Private Use Only lainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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