SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ gog धना० मानव, सुखोया ने सहु कोई रे॥ नविका, पुण्यतणां फल पेखो ॥ पुण्ये वंगित सफल फ १०६ ले सवि, हृदय विमासी देखो रे ॥०॥१॥ए आंकणी.॥ सामंतने मूक्यो नज्ञ घर, र रत्नकंबल इक आपो॥ सवालाख धन तेहनो पूर्वे, लेई घरमें श्रापो रे ॥०॥श॥ सामंते ! & सवि वात प्रकाशी, तव कहे नश एम ॥ कंबलनो व्यापार करेवा, अमने तो नेम रे ॥ न०॥ ३॥ रत्नकंबल में अचरिज शो , अमने नृपथी आम ॥ नृपने नाम नवारी नां, २ Pए धनने ए धाम रे ॥१०॥४॥ पिण एक माहरी वीनति नृपने, वीनवजो करजोगी। रत्नकंबल में सोलना कीधा, खंम बत्री सवि त्रोमी रे ॥न ॥ ५॥ वहु बत्रीशने वहेंची दीघा, पिण तेहने मन नाव्या ॥शं कंबल करीए ए पहेरी, इम कही नूमि विगव्या रे ॥ न॥६॥ स्नान करी तेणे पग लूही, नांख्या जलने खाले ॥ जो मुज वयणनो प्रत्यय है * नावे, तो जोवो परनाले रे॥न ॥ ॥ अवर काज फरमावशो जे कोइ, ते करशुं शिर नामी ॥ वस्त्रान्तरण की संतोषी, मूक्यो देश सलामी रे ॥न०॥ ॥ वात सर्व नृपने तेणे आवी, विगतेशं समजावे ॥ सांजली नृप मन विस्मय पाम्यो, अन्नय प्रते तेमावे रे ॥3 न०॥ ॥नशने मंदिरे तुमे जश्ने, शालिकुमर बोलावो ॥ गौनझोठ तणो ए अंगज, अम लगें तेमी आयो रे ॥ ॥१०॥ अन्नयकुमर ततहण लक्ष घरे, तात वयगयो आ १०६ Jain Education Intonal For Personal and Private Use Only 17 nelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy