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IP सुलोचना, कग्नि वचन मत दाख ॥ ४॥ नदयन कहे ते शा वती, कुष्टी नांख्यो मूज ॥
| पिण एतो ताहरे पिता, कपट देखाड्यो गूज ॥ ५ ॥ 8 ॥ ढाल ३ जी. ॥ (पीगेला। पाल, आंबा दोइ रानला मारा लाल.-ए देशी.)
वासवदत्ता वस्त्र करे तव वेगलो मारा लाल, दीगे रूप अनूप कुमरनो अति नलो ॥ मारा लाल ॥ अन्योन्ये श्रइ प्रीति नयनथी निरखतां मा०, जाणोए दंपति दोय सदा आगे महतां मा०॥१॥ यतः॥ नयन पदारथ नयन रस, नयने नयन मिलंत ॥ अराजाण्या शुं
प्रीतमी, पहिली नयन करत ॥१॥आपणने अन्योन्य रखे अंतर पझे मा०, करीये गुप्त वि चार रखे को मुख चमे मा० ॥ वासवदत्ता वेगे कहे तव कुमरने माण, माहरे तूं जरतार ४
वलं नही अवरने मा०॥॥ चार कलश धरी चंग वस्यां ते दपती माण, ते बे सुखमय हे * काल गमावे शुन्न मती मा०॥ गुप्तपणे सुख लोग संयोग सेवे रली मा०, पूरव पुण्य सं
योग वंबित आशा फली मा॥ ३ ॥ एहवे अनलगिरी तोमो पालान मदे कर मा०, विफ। ४ स्यो करे विनाश हणे नरने तुरी मा०॥ सागरमें जिम पोत नमे पवने चड्यो माण, तिम Kगेमी निज गम जई वनमें पड्यो मा०॥४॥ चंम्प्रद्योतन वात वेगे जव सांजली मा०,
बूट्यो अनलगिरी आज ग्रहे कहो कुण वली मा० ॥ माहरा राज्यनो सार जीवन सम ए।
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