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________________ Jain Educationa छपद्रुम रासनी, जिन कहे त्रीजी ढाल रे | पुण्ये० ॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ कला कोष देखी करी, रूपवंत शिरदार | जाग्याधिक जाली करी, चित चिंते धनसार ॥ १ ॥ पुण्योदयश्री माहरे, श्री जिनधर्म पसाय ॥ अंगज अद्भूत रूपन्यो, सय सयल सुखदाय ॥ २ ॥ एथी घन वाध्यो अधिक, यश हुन जगत विख्यात ॥ पंचमे पति वधती थइ, वारू बनी ए वात ॥ ३ ॥ सदगुण स्तवना कीजीए, तेहमां कोई न लाज ॥ सुत पिरा चित राजी रहे, एक पंथ दो काज ॥ ४ ॥ पंचमे बेसी शेठजी, धन सुततां दखाल ॥ प्रतिदिन जांखे प्रेमर्श, विविध परे सुप्रमाण ॥ ५ ॥ जन्म काले ए बालना, घन प्रगथ्यो प्रति नूर || दुःख दोहग दूरे टल्यां, अम कुल अंबर सूर ॥ ६ ॥ विनय जिवंत विद्या निलो, प्रवर नहीं को श्राज || अमजात ए आागले, कोय न श्रावे काज ॥ ७ ॥ ॥ दाल ५ थी. ॥ पुण्य न भूकीए. - ए देशी. ॥ 'वण सुणी निज तातनां रे, व सुत अकुलाय ॥ त्रिएये मिलीने तातना रे, श्रावी प्रणमे पायो रे । तातजी सांजलो || एनी अरदासो रे, मूकी श्रमलो ॥ मन राखी विसवासो रे, तातजी सांजलो ॥ १ ॥ ए ओकली ॥ धन्नकुमर श्रम अनुज बेरे, रूप कला अभिराम ॥ तिले करी में प्रमुदितप रे, रहीए सदा शुभ कामो रे ।ता० ॥ २ ॥ 3 mational For Personal and Private Use Only gainelibrary.org.
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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