SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ए, शब्द शास्त्रे हे अरे एह विचार के ॥ अष्ट स्थानक ले वर्णना, सोधी लेजो दे हवे अर्थ नदार के ॥ पु० ॥ १३ ॥ यतः॥ अष्टौ स्थानानि वर्णाना-रमुरः श्कंठः ३शिरस्तथा ।। जिह्वामूलं च पदंताच, नासिकोष्ठौ च प्रतालु च ॥१॥ नावार्थः-गती, कंठ, माधु, जिन्नामूल, दांत, नासिका, होउ अने तालवं. ए आठ वर्ण एटले अक्षरोनां स्थानक . अर्थात् ए पाठ स्थानको वमे अक्षरोना नच्चार पाय . ॥१॥ बीजे पद्ये नेत्र , तव सर. स्वती हे सुणी अर्थ सुजाण के ॥ एहना पद्यना अर्थने, नवि पामी हे तिणे नियति प्रमाण MS के ॥ पु० ॥१५॥ तव मंत्री पुत्री प्रते, कहे ताहरी हे थई पूर्ण प्रतिज्ञ के ॥ वर वरो ए 31 ६) मन होशथी, बुध्विंतो हे सुंदर अति सुज्ञ के ॥ पु० ॥१५॥ चित्त हरखे ते सरस्वती, न न तातनुं हे करे वचन प्रमाण के ॥ शुन्न दिवसे मंत्री तदा, परणावे हे ते अवसर जाण के ॥ पु० ॥१६॥ विनव दिये बहु नांतथी, सुख विलसे हे चारे स्त्री संग के॥ त्रीजे नल्हा से शोनती, ढाल सत्तरमी हे कही जिन मन रंग के॥पु०॥ १७ ॥ ॥दोहा. ॥ राजा माने अतिघj, देखो बुद्धि प्रकार ॥ मंत्री पिण कार्यादिके, पूरे वात विचार ॥१॥बुध्विंत देखी बहुल, पूढे नव नव नेद ॥ धनोशाह नत्तर तुरत, आपे धरी उमेद ॥२॥ चारे बुझ्थिी चतुर, चेतन लहे सुख सार॥ तिम चारे नारी थकी, सुख । Jain EducationaKational For Personal and Private Use Only Andainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy