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________________ * OSHOOT * * * % 4 ते ॥१६॥ किहां जाऊं कहने कहुं, शो करुं वलि प्रतिकार ॥ धन विण कोय न नत्रखें, कोय न माने जीकार ॥ ते॥१७॥ यतः ॥ सवैयो त्रैवीशो. ॥ चाह करे जिनकी जगमें सव आयके पाय नमे नलनैया, मातकुं तातकुं लागत वल्लन नामिनी व्हेन लेत बलैया ।। वात जुगे सब साचहि मानत लोक गुनी यश वास कहैया, केशवदास कहे सुरा सऊन सोही बमो जागो गांउ रुपैया ॥१॥ तो पिण नातिने पागले, कहुं सवि वात विचार है नाति थकी सवि नीपजे, कार्य अनोपम सार ॥ तेणारा आवी नातिने आगले, पोकायो धनसार ॥ त्रीजा नल्हासनी ढाल ए, जिन कहे दशमी नदार ॥ ते ॥१॥ ॥ दोहा. ॥ इन्य प्रमुख सवि श्म कहे, सांजल रे धनसार ॥ धनपति शेठ तणो सहु, यश जाणे संसार ॥१॥ परनारीने नविनजे, न लिये वली पर श्य ॥ जीवघात नवि आचरे, अन्नक तजे ए सर्व ॥२॥ तूं पिण जूगे नवि कहे, ते नवि करे अन्याय ॥इणि दि शि व्याघ्र इहां नदी, भावी बन्यो ए न्याय ॥ ३ ॥ तो पिण ताहरे कारणे, करशुं नद्यम श्रा 15 ज । वहु तुमारी तुत्तरमें, लावेशुं महाराज ॥४॥ श्म कहो सविनेला थर, ले नजरा ॐ सो सार ॥ धनपतिशाहने पागले, आवी करे जुहार ॥ ५॥ सन्माने सवि शेग्ने, देई फो है फल पान ॥ पूने शे कारण तुमे, श्राव्या पुरुष प्रधान ॥६॥ T Jain Educa ww.jainelibrary.org For Personal and Private Use Only t ional
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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