SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 483
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३९ एगया तेण नरिंदस्स सरीरचिन्तावसरे वाइओ संखो, मम कण्णमूले ठाऊण एस संखं धमइत्ति संबुद्धस्स रण्णो पुरीसनिरोहो जाओ, तओ कुविएण रण्णा सो वज्झो आणत्तो, तेणवि राया विन्नत्तो - सामिसाल ! अहं दूरट्टिओऽवि | संखं वायंतो लद्धीए समीवट्ठिओ चेव लक्खियामि, जइ एयं मह वयणं न मन्नेह तो पच्चयं कुणेह, तत्तो कुम्भीए निक्खिविऊण तीए सम्मं मुहं पूरिऊण उवरिं लक्खाए सारियाए तम्मज्झट्ठिएण धमिओ संखो, सवेहिवि सुओ नाओ, कुम्भी सवओऽवि अच्छिद्दा दिट्ठा । तहा लोहकारेण एगेण लोहंमि धमिए छिद्दं विणा तत्थ अग्गी पविट्ठो, तारुओ चेव जाओ, एवं जीवस्सावि पवेसे निग्गमे य परमा सत्ती । तयणु पुणोऽवि रण्णा भणियं - भयवं ! एगो चोरो मालाओ पुत्रं तोलिओ, तओ कण्ठकंदलुच्बंधणेण वावाइय तोलिओ तप्पमाणो चेव जाओ, न तत्थ घडचडयसरिच्छोऽवि जीवाइओ पयत्थो नीहरंतो दिट्ठो । तओ गुरुणा वाहरियं - महाराय ! एगेण गोवालबालगेण कुऊहलेण एगो दिइपुडो पवणेण पूरिऊण तोलिओ, पच्छा वायं निस्सारिय तोलिओ समाणो चेव, तयफासिंदियगिज्झरस मुत्तिमंतस्सवि वाउस्स पवेसनिस्सरणेण दिइणो समाणया, ता सरीरवइरित्तस्स ससंवेयणपञ्चक्खस्स चेयणालक्खणस्स जीवस्स परिन्नाणे को संसओ ? । तओ राया भणइ भयवं! तुम्ह पसाया जइवि झत्ति नट्ठो दुहाविविमोहविसो तहावि नत्थियवायं कमागयं कहं चएमि ?, गुरूहिं वृत्तं - संपत्तविवेएहिं एवं कुमग्गं चइय सुमग्गासेवणं काउमुचियं, भणियं च जे केऽवि पुचपुरिसा अंधलया अंधकूपए पंडिया । ता किं सच्चक्खेणं झडत्ति तत्थेव पडियवं १ ॥ Jain Educationonal For Private & Personal Use Only jainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy