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________________ ॥२२०॥ सम्य० ४ धुत्तेण मणुएणं ॥ १६२ ॥ साविहु साहइ वच्छे ! मा अन्नह तं ममि चिंतेसु । दिवसरीरो विहिओ मए समंता स| सत्तीए ॥ १६३ ॥ इत्थागओ य एसो तुमए गउरवपयं परं नेओ । जस्साहं परितुड्डा तस्स न दुलहमिहं किंपि ॥ १६४ ॥ ता मह वयणेण इमं भुंजावसु निययभायणे सीसं । दिवाइ रसवईए आजम्माभुत्तपुत्राए ॥ १६५ ॥ ता जोइणीवि रायं जंपर आगच्छ वच्छ ! भुंजेसु । नागरमणीः सद्धिं दिवमिमं रसवई झत्ति ॥ १६६ ॥ अत्ताणं कयकिच्चं मन्नड़ जाणंतओऽवि उच्छि । भुंजतो को अहवा इत्थीहिं न वंचिओ भुवणे १ ॥ १६७ ॥ काउवि कन्ना अन्नं मणुन्नमन्नं पुणोवि वियरंति । अन्ना जोइणिवयणा तम्मझे हसिय भुंजंति ॥ १६८ ॥ सोगंधियपरिकलियं तंबोलं तस्स दाविडं भणइ । पुत्तय ! उट्ठिय पिच्छसु रयणमयं नागरमणिहरं ॥ १६९ ॥ ताहिवि वरकन्नाहिं ठाणे ठाणे हसिजमाणो सो । वक्काहिं उत्तीहिं सुहेण दियहं अइक्कम ॥ १७० ॥ रयणीसमए जाए विसजिए पिक्खणाइववसाए । राया जोडियहत्थो विन्नवई जोइर्णि एवं ॥ १७१ ॥ जइ सामिणि! संतुट्ठा सचं चिय कप्पवलरिव तुमं । ता एयाणं मज्झा रमिउं मह अच्छरं देसु ॥ १७२ ॥ सा तं साहइ कहमवि जइ संसज्जंति अच्छराउ नरे । उज्झति सुरकुमारा ता एयाओ खणद्वेणं ॥ १७३ ॥ परमहयं नियविज्जावलेण तुह वंचियं करिस्सामि आजम्मं तु तए पुण वयणं एयाण कायचं ॥ १७४ ॥ अंगीकयम्मि रण्णा वयणे तो सा भणेइ ससिलेहं । तुज्झाणानिरयस्स य इमस्स पूरे मणइङ्कं ॥ १७५ ॥ एसो चिरजागरिओ भवणोवरि तुम्ह लहउ निद्दभरं । अन्नं च तुह 1 For Private & Personal Use Only Jain Education International स०टी० ॥२२० ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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