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________________ सम्य स.टी. २१६॥ AAAAAAAAACANCEL पुत्वभवभासण य जिणधम्मरया सभावओ जाया । उप्पन्नजाइसरणा कीरभवं जाणइ असेसं ॥५०॥ सम्मइंसणरम्मं जिणवरधम्मं करेइ सा बाला । पढइ गुणेई सत्थं अजियजणनिचसेवाए ॥ ५१ ॥जिणमयवियारसुंदरकम्मप्पयडीमुहेसु गंथेसुं । कुसलत्तं संपाविय विउसाणं अग्गिमा जाया ॥ ५२॥ घरकम्मधम्मकजे जाया सवत्थ पुच्छणिज्जा सा। पावेइ गउरवं पुण गुणनिवहो इत्थ किं चुजं? ॥ ५३॥ अन्नदिणे नियजणयं विनविउं तीइ तेजदेसाउ । आणाविया तुरंगा रविरहतुरयाण गबहरा ॥ ५४॥ सेराहा खुंगाहा हंसुलया उक्कनाह बुल्लाहा । नीलुयकालुयपमुहा बहुवेगा लक्खणोवेया॥ ५५॥ जुयलं ॥ ते पुरपरिसरसरियातीरे बंधाविया तरुच्छाए । दिट्ठा कस्स न चित्तं हरंति सुररायतुरयव? ॥ ५६ ॥ अन्नदिवसंमि राया अच्चब्भुयकोउगाउलियचित्तो। पिक्खइ ते वरतुरए विहगाहिवविजयवेगधरे ॥ ५७ ॥ मुलेण अतुल्लेणवि मग्गइ आसे सयं महाराओ। सिट्ठीवि नेव वियरइ धूयाए वारिओ संतो॥५८ ॥ अन्नदिणे तणयाए वयणेणं देइ नियवरकिसोरे । गम्भकए तुरगीणं सिट्ठी अभत्थिओ रण्णा ॥ ५९॥ पइवच्छरं किसोरा रण्णा संचारिया किसोरीणं । जा पंच बच्छराई तत्तो जाया हया बहवे ॥६॥ अह चंदलेहकन्ना जंपइ तायं किसोरएहि मह । रण्णो जे संजाया तुरया ते लेसु सत्वेऽवि ॥ ६१ ॥ रुट्ठो राया जइया तुमं धरावेइ भणइ वा किंपि । तइया भणियबो सो जं मुणइ सुया मह रहस्सं ॥६२॥ धूयावयणेण तओ नियतुरयसमुन्भवा य जे तुरया। नीरं पाउमुवेया नईइ ते सिट्टिणा हरिया ॥६३॥ सिढिसुहडेहिं तासियपंडववयणेहि २१६॥ Jain Educationa bhal For Private &Personal use Only KIainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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