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________________ सम्य० ॥१३३॥ निए सयणे । सम्माणिउं भणेइ वरवसणविभूसणाईहिं ॥ १८ ॥ एयस्स य जणणीए जं दिट्ठो सुमुणियम्मि मणि-4 स० टी० नागो। तेण इमस्स य नामं नागिंदो होउ पुत्तस्स ॥ १९ ॥ तं पुत्तं सूरीणं नाऊणं जाव ते समप्पंति । ताव गुरूहिं भणिया दट्टणं लक्खणे तस्स ॥ २० ॥ संघसिरोमणिभूओ भविस्सइ एस तुम्ह अंगरुहो । तो पोसिऊण सुइरं आ|णिजसु अट्ठमे वरिसे ॥ २१॥ तेहिवि गुरुवयणेणं नीओ सगिहम्मि पंचधाईहिं । लालिजंतो कप्पडमुख सो | बुड्डिमणुपत्तो ॥ २२ ॥ अह अट्ठमम्मि वरिसे सुमुहुत्ते उच्छवं करतेणं । पिउणा गुरूण दिन्नो तेहि वि सो दिक्खिओ झत्ति ॥ २३॥ तो पडिमाए कुच्छी-सरसीए रायहंससारिच्छा। संजाया अन्नेविहु तणया रूवेण मयण|समा ॥ २४ ॥ अह सो खुडगसाहू सोवीरं विहरि गिहिकुलाओ। जा चिट्ठइ गुरुपुरओ ता तेहिं पुच्छिओ एसो ला॥ २५ ॥ जाणसि आलोएउं एयं ? तो सो कहेइ जाणेमि । तुम्ह पसाया तो भण इय गुरुणुत्तो कहइ एवं ॥२६॥ अंबं तंबच्छीए अपुफियं पुप्फदंतपंतीए । नवसालिकंजियं नववहूइ कुडएण मह दिन्नं ॥ २७ ॥ गुरुणो तदुत्तिजुत्तिं सुणित्तु साहति नियह भो! मुणिणो । सिंगारग्गिपलित्तं तो नाममिमस्स य पलित्तो ॥ २८ ॥ तत्तो सो| गुरुचरणे नमिउं विन्नवइ देह पसिऊणं । एगं मत्तं जेणं हवेमि पालित्तओ भयवं! ॥२९॥ तत्तो पसन्नवयणा गुरुणो नाम तमेव पडिवन्ना । पुच्छंति किंपि जाणसि तुमंपि छंदाइयं ? वच्छ ! ॥ ३०॥ किंपि पढ़ताणं मुणीण ॥१३३॥ सो सुत्तमाइयं सुणियं । पढियमिव भणइ गुरुणो पुरओ सयलंपि अक्खलियं ॥३१॥ अन्नं च-दिटुं सुअयं अहि 49 Jan Education Populional For Privale & Personal Use Only A jainelibrary.org .
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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