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________________ C सम्यक R ॥१२१॥ ARRECAMEREOS अपीइ जाया, जओ इमहिं मह माणखंडणा कया, अओ इत्थट्ठाउं न जुज्जइ, भणियं च-माणि पणठुइ चजइ न साटी तणू तो देसडा चइज । माहु जणकरपल्लविहिं दंसिजंतु भमिज ॥ १॥ तेण पावकम्मोदएण अप्पा गुणपछयारूढोऽवि दोसावडे पाडिओ, अहो दुरंतया कम्माणं, जे तित्वकसाओदएण उत्तमगुणट्ठाणेहिंतो मिच्छत्तगुणट्ठाणे 2 पडिओ दुवालसवरिसे परिपालियचरित्तो, जिणमुई मुत्तूण पुणरवि सहावसिद्धं माहणत्तमुवगओ वराहमिहरो, भणियं च-प्रकृत्या शीतलं नीरमुष्णितं पहियोगतः । पुनः किं न भवेत् शीतं ?, स्वभावो दुस्त्यजो यतः ॥१॥ तओ। चंदसूरपन्नत्तिपमुहागमगंथेहिंतो किंपि किंपि रहस्सं गहिऊण सनामेण वाराहीसंहियत्तिनामयं जोइससत्थं सवा-14 दायलक्खप्पमाणं करेइ, तं च सिद्धताओ उद्धरियति पाएण सचं होइ, अओ लोएसु पसिद्धं तं जायं, अन्नं च। अंगोवंगेहिंतो दवाणुओगओ मंतताइ मुणिउं पउंजिऊण य जणमणाई रंजेइ। मिच्छद्दिट्ठीण पुरओ नियचरियमेवं | परवेइ-जं अहं दुवालसवरिसे दिणयरमण्डले ठिओ, भयवयावि भागुणा सयलगहमंडलस्सुदयत्थमणवक्काइयारठिइजोगविवागाइयं पसिय मह दंसियं, पेसिओ य अहं महियले, तओ मए इमं जोइससत्थं कयं, जइ असचं ता किं परिमियं भासिज्जइ ?, मिच्छत्तंधियमइणो धिजाइया वजपायसरिसंपि तवयणं तहेव पडिवजंति, अहो अन्नादाणविलसियेमएसिं। जओ-वत्थंचले सिलायलखंडं बंधित्तु मोयगमिमंति । धुत्तेहिं भणिरेहिं बाला लहु भोलवि ॥१२॥ जंति ॥१॥ तयणु भूदेवा देवस्सेव तस्स वन्नणमेव कुणंता चिटुंति- जमेस वराहमिहरो मोहणनहगमणाइबहु AKAR-MARKECRECat Jain Education anal For Privale & Personal use only Ahildjainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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