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सम्मत्तनाणचरणा, संपुन्नो मोक्खसाहणोवाओ । ता इह जुत्तो जत्तो, ससत्तिओ नायतत्ताणं ॥६५॥ इय सतसट्ठिपयाई, उच्चिणिउं विउलआगमारामा। संगहिया इत्थ मए, मंदमईणं सरणहेउं ॥ ६६ ॥ एसिं दुविहपरिन्ना, दंसणसुद्धिं करेइ भव्वाणं । सुद्धंमि दंसणंमी, करपल्लवसंठिओ मुक्खो ॥ ६७ ॥ संघे तित्थयरम्मी, सूरिसु रिसीसु गुणमहग्घेसुं। अप्पञ्चओ न जेसिं, तेसिं चिय दंसणं सुद्धं ॥ ६८॥
जे पुण इयविवरीया, पल्लवगाही सबोहसंतुट्ठा । सुवहुंपि उज्जमंता, ते दंसणवाहिरा नेया ॥ ६९ ॥ * इय भाविऊण तत्तं, गुरुआणाराहणे कुणह जत्तं । जेणं सिवसुक्खबीयं, दसणसुद्धिं धुवं लहह ॥७॥
-RRERASACARRERA
- इति सम्यक्त्वसप्ततिमूलमात्रम् ॥
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