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________________ सम्य० ॥९६॥ पहाणं न आइट॥ १४ ॥ रायावि भणइ दइए!, मा तं साहेसु एरिसं वयणं । जं मुणिणो सयसुइणो, चरित्त- स०टी० जलपूयसवंगा ॥१५॥ साविहु भणेइ पिययम! मुणिअंगं तहवि फासुयजलेणं । खालसु जेण दुगंधो, नासेइ कयावराहुव्व ॥ १६ ॥ इय तन्निब्बंधणं, खयरो पउमिणिपुडेहि निज्झरओ। आणिय फासुयसलिलं, पक्खालइ जइवरस्स तणुं ॥ १७॥ तत्तो जायपमोओ, दइयासहिओ स खयराहिवई । वरगन्धेहिं विलेवइ, मुणिवइणो सबमवि अंगं ॥ १८ ॥ वंदिय ते दोवि मुणिं, पवरविमाणं चडित्तु वेगेणं । आयासम्मि भमंता, तित्थाइ नमंति भावेणं ॥१९॥ पुणरवि तम्मि पएसे, समागया जत्थ सो मुणी आसि । तत्थ अपिच्छंती सा, भणेइ पिय! दीसइ न साहू ४॥२०॥ तेणवि सा पडिभणिया, स एस दीसेइ दड्डकीलुक्छ । सामलियसवगत्तो, मुणीसरो भमरनियरोहिं ॥२१॥ जं अम्हेहिं विलित्तो, सिरिखंडाईहिं सुरहिगंधेहिं । नूणं तेण महप्पा, चंदणरुक्खुब् भसलेहिं ॥ २२ ॥ फुलंघएहिं गंधंधएहिं चइऊण सुरहिवणकुसुमे । परिवेढियपीडिजइ, हहागुणो अवगुणो जाओ ॥ २३ ॥ हद्धी मयमत्तेहिं अकजकजुजएहिं अम्हहिं । दुक्खम्मि ठविय साहुं, अप्पा नयरम्मि पक्खित्तो ॥ २४ ॥ तो खयरो | वेगेणं, मुणिंददेहाउ भमरविंदाई । बहुदुहसञ्जणयाई, निद्धाडइ नियकुकम्माई ॥ २५ ॥ तम्मि समयम्मि मुणिणो, तं दुसहपरीसहं सहंतस्स । घाइचउक्के खीणे, केवलनाणं समुप्पन्नं ॥ २६ ॥ तत्तो चउविहसुरा, केवलमहिम कुणंतया मुणिणो । गंधोदएण सहियं, वासिंसु सिरे कुसुमबुद्धिं ॥ २७ ॥ जयसूरखेयरोविहु, दइयासहिओ नमित्तुर Hamn Education For Privale & Personal Use Only wratjainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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