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________________ ॥२४॥ श्रीचन्द्रीया एयविसेसं विणावि चंदबलरावजोगाइपसत्थे करिइत्ति । अन्नं च रयणीए पढमचरमजामजागरणं बालवुड्डाईण सव्वसामन्नं. योगविधिः सानाचारी, जोगिणा उण सव्ववेलं अप्पनिदण होयव्वं, हासकंदप्पविगहारहिएण य होयव्वं सव्वकालमेव, किमुय जोगिणा | १६ " एगागिणा ?, साहुणा सव्वयावि हत्थसओवरि न गंतव्यं किमुय जोगवाहिणा?, अह जाइ अणाभोगेण आयाम से। | पच्छित्तं, आगाढजोगवाही सीवणतुन्नणपीसणलेवकरणाई न करेइ, सुत्तत्थाई उभयपोरिसिसु परियट्टेइ, अपुः ।। ब्वाई पढणाइं न करेइ, पुल्वपढियं न विस्सारेइ, पत्तबंधाइउवगरणं उवउत्तो सयावि नियए काले पडिलेहेइ, अप्प-1 सर्वेण वयइ न ढड्डरेण, कामकोहाइनिग्गहो कायव्यो, तहा कप्पइ भत्तं वा पाणं वा अभितरसंघर्ट वल्लीसंघट्ट वेई बाहिगयं वा न कप्पइ, तिन्नि भायणाई उवरि ठवेइ उस्संघटुं, मज्झपविट्टकरंगुलिचउक्कगाहेयं तुंबयाइयं मज्झविdigकरंगुढगहियं दप्पयाइपत्तं च न उरसंघट्टइ, एयविवरीए उस्संघट्टइ, भत्तं पाणं वा उगुडिओ भूमाए मेल्लेइ उस्संघट्ट, उगुडिओ भूमीवि संघट्टइ उस्संघटुं, तुयट्टो संघट्टेइ उस्सं०, विगहाउ करेमाणो संघट्टइ अस्सं., असंखडं करेमाणो संघट्टइ उस्सं०, संघट्टे वा पयलाइ उस्सं०, परिसाडि भत्ते पाणे वा छुहइ उस्सं०, उवविठ्ठस्स उब्भो ठिओ अप्पेइ भत्तं वा पाणं वा उस्संघटुं॥ संपयं गणिजागविहाणे कप्पाकप्पविही भण्णइ-माइसरावादिवासियं पगरणसंसटुं न उव ॥२४॥ Jain Education Interi For Private & Personal use only ॐ w.jainelibrary.org
SR No.600138
Book TitleSubodh Samachari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMacchindracharya
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1980
Total Pages104
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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