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________________ श्रीचन्द्रीया सामाचारी पञ्चमी विधिः७ जइ कहवि असामत्थं होइ सरीररस दिव्वजोएणं । तो उत्तरकालंविहु पूरेज्जा असढभावो उ ॥२॥ एगतेणं जेणं चउत्थवयपालणं दढं भणियं । तेण जहासत्तीए सेसं खलु होइ कायव्वं ॥ ३ ॥ जइ होज्जा असमत्थो काऊणं जेट्टपंचमी कोइ । सो इयरिंपि करेज्जा तीएवि फलं जओ तल्लं ॥ ४॥ कित्तीए मच्छरेण व पूयासक्कारचित्तपीडाए । सुबहुंपि तवच्चरणं दोग्गइगमणं पसाहेइ ॥ ५ ॥ पुरिसो वा इत्थी वा नाऊणं निययदेहसामत्थं । सम्मत्तनाणकलिओ माणाइविवजिओ धीरो ॥ ६॥ गंतण जिणिंदघरं काऊणं बिंबावविहपूयं च । ठविऊण पोत्थयाई सुहतंदुलसत्थियं कुज्जा ॥ ७ ॥ घयपडि पुन्नं काउं पंचाहं वट्टीहिं दीवयं तह य । फलकुसुमवासगंधाइएहिं परिपूयणं तहय ॥ ८॥ लहुईए पंचमीए गहणविहाणं इमं हवइ नेयं । एयं चिय पंचगुणं इयरीए होइ कायव्वं ॥ ९ ॥ तत्तो गुरूण पुरओ गहिऊणं पंचभाएँ उववासं । सुद्धे पक्खमि सुहे सव्वाणवि कम्ममासाणं ॥१०॥ मग्गसिरे तह माहे फग्गुण वइसाह जेट आसाढे । एए कम्मियमासा सेसा य अकम्मिा मासा ॥११॥ अह पुनाए ताए नियविहवं जाणिऊण हियएण । होणोत्तममज्झिमयं उज्जमणं होइ कायव्वं ॥ १२ ॥ Reading ॥१२॥ Jain Education Interational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600138
Book TitleSubodh Samachari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMacchindracharya
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1980
Total Pages104
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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