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परिशिष्टम्
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सिरिसंति-* मन्निज्जइ जो अहरो सव्वाऽमयरससमूहणिम्मविओ । दोहागारेण ठियं, मुणह तयं चम्मखंडं ति ॥५७४४।।
नार्योष्ठे नाहचरिए मयरद्धयतुल्लेण वि घेप्पंति ण महिलियाओ रूवेण । माणुद्धरपुरिसेण वि, ता धी धी थीसहावस्स ॥५०५७।।
नारीस्वभावे मा होह सुयग्गाही, मा पत्तिय जं न दिद्रुपच्चक्खं । पच्चक्खे वि य दिढे जुत्ताजुत्तं वियारेज्जा ।।७१४२।।
विवेके माणि पणट्ठइ जइ न तणु तो देसडा वइज्ज । मा दुजणकरपल्लविहिं दंसिज्जंतु भमिण्ज ॥६९०७।।
स्वमाने माणुस्साणं पि एमेव मरणं राय ! जायए । सयं वा परओ वा वि आउयम्मि खयंगए ॥२२३५।।
मरणे मुत्ति चउत्थी जाण पहाणी, लोभविणिग्गहि जा परियाणी । जा णीसेसहं सोक्खहं खाणी, सा मई अक्खिय एह वियाणी ।।५५६७॥ यतिधर्मे * मोहमहागहगहिया गुरुवयणं निम्मलं सुणंता वि । जंन हणंति पमार्य, तं मन्ने कालदर व्च ॥१६७६॥
मोहे यत्संपत्त्या न युक्ता जगति तनुभृतो यच्च नापद्विमुक्ता, यन्नाधि-व्याधिहीनाः सकलगुणगणालङ्कताङ्गाश्च यन्नो * यन्न स्वर्ग लभन्ते गतनिखिलभयं यच्च नो मोक्षसौख्यं, दुष्टः कल्याणमालादलनपटुरयं तत्र हेतुः प्रमादः ॥५५५९।।
प्रमादे रणं पि होइ वसिमं, जत्थ जणो हिययवल्लहो वसइ । पियविरहियाण वसिमं पि होइ अडवीए सारिच्छं ॥५०५३।। प्रियजने रुद्दा वि भूयणिवहा करालकरवाल-कत्तियकरग्गा । दितस्स दाणमणहं हवंति आणाकरा णिच्चं ॥७७||
दाने लोभाओऽणत्थपउरम्मि संसारे भमई जिओ । लोहाओ सब्वदुक्खाणं, संसारे होइ भायणं ॥५३४१।।
लोभे ___वंसच्छेए वि कए न मुयइ मायंगसंगहं विंझो । अविणयभरियं पि जणं गरुया पालेंति पडिवन्नं ॥२४२७।। वरि अग्गिम्मि पवेसो जलंतजालाकलावकलियम्मि । नो चेव सीलरयणस्स खंडणं जुज्जए कहि वि ॥५९९४।।
शीले
सुपुरुषे
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